Category: प्रेगनेंसी
By: Editorial Team | ☺1 min read
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से शिशु के जन्म वृद्धि दर में दोगुने का इजाफा हुआ है। सिजेरियन डिलीवरी में इस प्रकार की दोगुनी वृद्धि काफी चौंका देने वाली है। विशेषज्ञों के अनुसार इसकी वजह सिजेरियन डिलीवरी के जरिए अस्पतालों की मोटी कमाई है।

सरकारी अस्पतालों नॉर्मल डिलीवरी के लिए 500 व सिजेरियन डिलीवरी के लिए 1500 लगते हैं। लेकिन निजी अस्पतालों में नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी के लिए वसूले जाने वाली राशि में भारी अंतर है।
बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों की बात करें तो निजी अस्पताल में नॉर्मल डिलीवरी के जरिए शिशु के जन्म का खर्च 8000 से लेकर ₹50000 तक होता है। वहीं सिजेरियन डिलीवरी का खर्च 45,000 से लेकर डेढ़ लाख तक आता है। दिल्ली में नार्मल डिलीवरी के लिए मरीजों से ₹15000 से लेकर ₹50000 तक वसूला जाता है और सिजेरियन डिलीवरी के लिए खर्च आता है ₹50000 से लेकर 13 लाख तक का। मुंबई जैसे शहर में नार्मल डिलीवरी के लिए खर्च आता है 8000 से लेकर ₹45000 तक जबकि सिजेरियन डिलीवरी से खर्च डेढ़ लाख रुपए तक आता है।
नॉर्मल और सिजेरियन के खर्च भारी अंतर का कारण है जन्म देने की प्रक्रिया। सिजेरियन डिलीवरी में ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है जबकि नॉर्मल डिलीवरी में ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

सिजेरियन डिलीवरी में शिशु के जन्म के बाद मां को 4 से 6 दिन तक अस्पताल में रुकना पड़ता है। इसीलिए ऑपरेशन के खर्च के साथ साथ चार से 6 दिन का अस्पताल का खर्च भी जुड़ जाता है। इससे अस्पतालों को बहुत मुनाफा होता है। लेकिन मरीजों के लिए भी यह जरूरी है क्योंकि ऑपरेशन के बाद 4 से 6 दिन तक अस्पताल में रहने के दौरान अगर कोई कॉम्प्लिकेशन होता है तो वहां पर मौजूद डॉक्टर तुरंत चिकित्सा मदद प्रदान कर देते हैं।
सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी के लिए अनाप-शनाप बिल बनाने पर अस्पतालों के खिलाफ कई लोगों ने समय-समय पर आंदोलन किए हैं। भारत मूल्य संवेदनशील बाजार है। यहां पर हर वर्ग के लोग रहते हैं। शिशु के जन्म पर सभी के लिए इतना खर्च कर पाना संभव नहीं। इसीलिए सती स्वास्थ्य सेवा भारत के लिए एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है। यह तभी संभव है जब देश की सरकार एवं स्वास्थ्य संस्थान अपनी नीतियों में बदलाव करें।
चिकित्सक और अस्पताल प्रशासन का मानना है कि नॉर्मल डिलीवरी तथा सिजेरियन डिलीवरी का खर्च समान रखना ठीक कदम नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि हर चिकित्सक को अपने हिसाब से शुल्क तय करने का अधिकार है। अस्पताल को संचालित करने का खर्च कई बातों पर निर्भर करता है और यह अस्पताल के हिसाब से अलग अलग हो सकता है। कुछ अस्पताल अपने मरीजों को ज्यादा सुविधाएं प्रदान करते हैं और इन सुविधाओं को प्रदान करने के लिए ज्यादा बजट की भी आवश्यकता पड़ती है। इसका बोझ भी मरीजों पर ही आता है।
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बच्चो में दांत सम्बंधी समस्या को लेकर अधिकांश माँ बाप परेशान रहते हैं। थोड़ी से सावधानी बारात कर आप अपने बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत को घर पे ही ठीक कर सकती हैं। चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए दांतों का बहुत ही महत्व होता है। इसीलिए अगर बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो माँ बाप का परेशान होना स्वाभाविक है। बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत उनके चेहरे की खूबसूरती को ख़राब कर सकते हैं। इस लेख में हम आप को बताएँगे कुछ तरीके जिन्हें अगर आप करें तो आप के बच्चों के दांत नहीं आयेंगे टेढ़े-मेढ़े। इस लेख में हम आप को बताएँगे Safe Teething Remedies For Babies In Hindi.
इस असान तरीके से बच्चों के दांतों के संक्रमण को समय रहते पहचाने ताकि बच्चों को दांतों के दर्द से बचाया जा सके। सभी जानते हैं की दांतों का दर्द कितना कितना कष्टकारी होता है। बच्चे दिन भर कुछ ना कुछ खाते ही रहते हैं इस वजह से उनके दांतों में संक्रमण की सम्भावना बनी रहती है। बच्चों के दांतों में संक्रमण को पहचानने के 7 तरीके।
सभी बचों का विकास दर एक सामान नहीं होता है। यही वजह है की जहाँ कुछ बच्चे ढाई साल का होते होते बहुत बोलना शुरू कर देते हैं, वहीँ कुछ बच्चे बोलने मैं बहुत समय लेते हैं। इसका मतलब ये नहीं है की जो बच्चे बोलने में ज्यादा समय लेते हैं वो दिमागी रूप से कमजोर हैं, बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है की उन्हें शारीरिक रूप से तयार होने में थोड़े और समय की जरूरत है और फिर आप का भी बच्चा दुसरे बच्चों की तरह हर प्रकार की छमता में सामान्य हो जायेगा।आप शिशु के बोलने की प्रक्रिया को आसन घरेलु उपचार के दुवारा तेज़ कर सकती हैं।
शिशु की खांसी एक आम समस्या है। ठंडी और सर्दी के मौसम में हर शिशु कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता है। इसके लिए डोक्टर के पास जाने की अव्शाकता नहीं है। शिशु खांसी के लिए घर उपचार सबसे बेहतरीन है। इसका कोई side effects नहीं है और शिशु को खांसी, सर्दी और जुकाम से रहत भी मिल जाता है।
शिशु के जन्म के तुरंत बाद कौन कौन से टीके उसे आवश्यक रूप से लगा देने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी येहाँ प्राप्त करें - complete guide।
सरसों का तेल लगभग सभी भारतीय घरों में पाया जाता है क्योंकि इसके फायदे हैं कई। कोई इसे खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करता है तो कोई इसे शरीर की मालिश करने के लिए इस्तेमाल करता है। लेकिन यह तेल सभी घरों में लगभग हर दिन इस्तेमाल होने वाला एक विशेष सामग्री है।
कुछ बातों का ख्याल अगर रखा जाये तो शिशु को SIDS की वजह से होने वाली मौत से बचाया जा सकता है। अकस्मात शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) की वजह शिशु के दिमाग के उस हिस्से के कारण हो सकता है जो बच्चे के श्वसन तंत्र (साँस), दिल की धड़कन और उनके चलने-फिरने को नियंत्रित करता है।
बच्चों के साथ यात्रा करते वक्त बहुत सी बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि बच्चे पुरे सफ़र दौरान स्वस्थ रहें - सुरक्षित रहें| इन आवश्यक टिप्स का अगर आप पालन करेंगे तो आप भी बहुत से मुश्किलों से अपने आप को सुरक्षित पाएंगे|
विटामिन सी, या एस्कॉर्बिक एसिड, सबसे प्रभावी और सबसे सुरक्षित पोषक तत्वों में से एक है यह पानी में घुलनशील विटामिन है यह कोलेजन के संश्लेषण के लिए एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जिससे रक्त वाहिकाओं और शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। मानव शरीर में विटामिन सी पैदा करने की क्षमता नहीं है। इसलिए, इसे भोजन और अन्य पूरक आहार के माध्यम से प्राप्त करने की आवश्यकता है।
हमें आपने बच्चों को मातृभूमि से प्रेम करने की शिक्षा देनी चाहिए तथा उनके अंदर ये भावना पैदा करनी चाहिए की वे अपने देश के प्रति समर्पित रहें और ये सोचे की हमने अपने देश के लिए क्या किया है। वे यह न सोचे की देश ने उनके लिए क्या किया है। Independence Day Celebrations India गणतंत्र दिवस भारत नरेन्द्र मोदी 15 August 2017
अवोकेडो में प्रचुर मात्रा में बुद्धि को बढ़ाने वाला omega-3s पाया जाता है| इसके साथ है इसका स्वाद बहुत हल्का होता है जीस वजह से शिशु आहार के लिए अवोकेडो एकदम perfect है| जानिए step-by-step तरीके से अवोकेडो से शिशु आहार त्यार करने की विधि|
फाइबर और पौष्टिक तत्वों से युक्त, मटर की प्यूरी एक बेहतरीन शिशु आहार है छोटे बच्चे को साजियां खिलने का| Step-by-step instructions की सहायता से जानिए की किस तरह आप ताज़े हरे मटर या frozen peas से अपने आँखों के तारे के लिए पौष्टिक मटर की प्यूरी कैसे त्यार कर सकते हैं|
Jaundice in newborn: Causes, Symptoms, and Treatments - जिन बच्चों को पीलिया या जॉन्डिस होता है उनके शरीर, चेहरे और आँखों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलिया के कारण बच्चे को केर्निकेटरस नामक बीमारी हो सकती है। यह बीमारी बच्चे के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है।
6 महीने की उम्र में आप का बच्चा तैयार हो जाता है ठोस आहार के लिए| ऐसे मैं आप को Indian baby food बनाने के लिए तथा बच्चे को ठोस आहार खिलाने के लिए सही वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी| जानिए आपको किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी अपने बच्चे को ठोस आहार खिलाने में|
बहुत लम्बे समय तक जब बच्चा गिला डायपर पहने रहता है तो डायपर वाली जगह पर रैशेस पैदा हो जाते हैं। डायपर रैशेस के लक्षण अगर दिखें तो डायपर रैशेस वाली जगह को तुरंत साफ कर मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम लगा दें। डायपर रैशेज होता है बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से और मेडिकेटिड पाउडर या क्रीम में एंटी बैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो नैपी रैशिज को ठीक करते हैं।
शांतिपूर्ण माहौल में ही बच्चा कुछ सोच - समझ सकता है, पढ़ाई कर सकता है, अधयाय को याद कर सकता है। और अपने school में perform कर सकता है। माता-पिता होने के नाते आपको ही देना है अपने बच्चे को यह माहौल।
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कौन नहीं चाहता की उनका शिशु गोरा हो! अगर आप भी यही चाहते हैं तो कुछ घरेलु नुस्खे हैं जिनकी सहायता से आप के शिशु की त्वचा गोरी और निखरी बन सकती है। जानिए की आप सांवले बच्चे को कैसे बनाएं गोरा
नवजात बच्चों द्वारा बार-बार उल्टी करना सामान्य बात है क्योंकि वे अपने खाद्य - पदार्थ के साथ में तालमेल बिठा रहे होते हैं और उनका शरीर विकसित हो रहा होता है। उलटी के गंभीर लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श ले।
मसाज तथा मसाज में इस्तेमाल तेल के कई फायदे हैं बच्चों को। मालिश शिशु को आरामदायक नींद देता है। इसके साथ मसाज के और भी कई गुण हैं जैसे की मसाज बच्चे के वजन बढ़ने में मदद करा है, हड़ियों को मजबूत करता है, भोजन को पचने में मदद करता है और रक्त के प्रवाह में सुधार लता है।