Category: शिशु रोग
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बच्चों का शारीर कमजोर होता है इस वजह से उन्हें संक्रमण आसानी से लग जाता है। यही कारण है की बच्चे आसानी से वायरल बुखार की चपेट पद जाते हैं। कुछ आसन घरेलु नुस्खों के दुवारा आप अपने बच्चों का वायरल फीवर का इलाज घर पर ही कर सकती हैं।

जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें आसानी से संक्रमण लग जाता है। छोटे बच्चों का रोग प्रतिरोधक तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है। इस वजह से उनका शरीर आसानी से संक्रमण का शिकार हो जाता है।
शिशु के जीवन के प्रथम 4 साल ऐसे होते हैं जब वह सबसे ज्यादा बीमार पड़ता है।
चाहे आप जितना भी कोशिश कर ले अपने बच्चे को संक्रमण से बचाने का, उसे कोई ना कोई बीमारी लग ही जाती है। शिशु का शरीर बहुत नाजुक होता है और इस वजह से मौसम के थोड़े से बदलाव से ही बच्चे बीमार पड़ जाते हैं।
बच्चों में वायरल फीवर एक बहुत ही आम समस्या है। वायरल फीवर बच्चों को संक्रमण की वजह से लगता है।

जितना हो सके अपने बच्चे को बिस्तर पर आराम करने दें। विश्राम करने से शिशु का शरीर अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल संक्रमण से लड़ने में करेगा। आपका बच्चा जितना ज्यादा आराम करेगा उसके स्वास्थ्य को उतना जल्दी फायदा पहुंचेगा।





जिन बच्चों का रोग प्रतिरोधक तंत्र बहुत मजबूत होता है उन्हें आसानी से बुखार नहीं होता है। बच्चों को विभिन्न प्रकार के आहार देने से उन्हें अनेक प्रकार के पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और मिनरल मिलते हैं।
कई महत्वपूर्ण विटामिंस और मिनरल्स शरीर को अंदर से मजबूत बनाते हैं, शारीरिक विकास में मदद करते हैं और शिशु के शरीर को संक्रमण से लड़ने में सक्षम बनाते हैं।
जिन बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिलता है या जो बच्चे फास्ट फूड पर ज्यादा निर्भर रहते हैं, अक्सर उनके शरीर को सभी प्रकार के पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
यही वजह है कि ये बच्चे आसानी से संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। अगर आप अपने बच्चे को हर प्रकार की बीमारी और संक्रमण से बचा के रखना चाहती हैं तो उसके आहार में विभिन्न प्रकार के मौसम के अनुरूप फल और सब्जियों को सम्मिलित करें।
इससे आपके शिशु को वह सारे पोषक तत्व मिल पाएंगे जिनका उसके शरीर को समय-समय पर जरूरत पड़ता हैं।
बच्चों में वायरल फीवर का इलाज कई तरह के घरेलू नुस्खे के द्वारा किया जा सकता है। वायरल फीवर में शिशु की उचित देखरेख और उसका इलाज घर पर ही आप आसानी से कर सकते हैं।

लेकिन फिर भी यह आवश्यक है की वायरल फीवर होने की स्थिति में आप अपने शिशु को नजदीकी शिशु स्वास्थ्य केंद्र पर अवश्य लेकर जाएं या किसी शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाएं ताकि इलाज के लिए सही मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।
हर बच्चे का शरीर कई मायने में अलग होता है। इसीलिए आपकी शिशु के शरीर की वास्तविक चिकित्सीय स्थिति को देखकर आपके बच्चे का डॉक्टर सही राय दे सकता है।
छोटे बच्चों का शरीर बहुत नाजुक होता है इसीलिए यह जरूरी है कि उन्हें समय पर सही उपचार मिल सके।

बच्चों में वायरल फीवर के इलाज के लिए भारत में सदियों से अनेक प्रकार की घरेलू नुक्से प्रचलित है। इन्हें सदियों से आजमाया और परखा गया है।
भारत में इनका इस्तेमाल आज भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। सबसे अच्छी बात यह है कि इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और साथ ही घरेलू उपचार में इस्तेमाल सामग्री आपको आसानी से अपने किचन में मिल जाएगा।

हल्दी एक प्राकृतिक एंटीआक्सीडेंट है। इसमें बुखार को ठीक करने के गुण विद्यमान है। एक चम्मच हल्दी पाउडर और एक चम्मच सोंठ पाउडर को एक कप पानी में मिलाएं इसमें थोड़ा सा चीनी डालकर गर्म करें। जब पानी उबलने लगे तो आंच को बंद कर दें।
आप अपने बच्चे को दिन भर में थोड़ा थोड़ा करके इसे पीने को दे सकते हैं। वायरल फीवर में इससे आपके बच्चे को बहुत आराम पहुंचेगा।

हल्दी की तरह तुलसी में भी प्राकृतिक रूप से एंटीबायोटिक गुण होते हैं। अपने एंटीबायोटिक गुणों के कारण तुलसी शिशु के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म करने में सक्षम है।
एक चम्मच लोंग को तुलसी के 15 ताजे पत्तों के साथ आधा लीटर पानी में उबालें। जब पानी कुछ देर तक उबल जाए, तो इसे आंच से उतार लें और पानी को छानकर अलग रख लें।
इसकी थोड़ी सी मात्रा आप अपने बच्चे को हर घंटे में एक बार पीने को दें। आपके बच्चे को वायरल फीवर में जल्द आराम मिलेगा।

यूं तो धनिया सेहत के लिए बहुत ही धनी होता है, लेकिन वायरल बुखार में यह और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
धनिया वायरल जैसे कई प्रकार के रोगों का खात्मा करने का क्षमता रखता है। वायरल बुखार को खत्म करने के लिए धनिया से बना चाय बहुत ही कारगर औषधि है।

मेथी बहुत ही आसानी से लगभग सभी भारतीय घरों में मिल जाएगा। इसका इस्तेमाल कई प्रकार से भारतीय व्यंजनों में होता है।
शिशु के वायरल फीवर के उपचार के लिए आप मेथी के दानों को एक कप पानी में भिगोकर रत भर के लिए छोड़ दें।
सुबह उठकर मेथी को छानकर अलग कर लें और इस पानी को थोड़ा-थोड़ा करके अपने शिशु को हर 1 घंटे में पिलाएं। इससे आपके शिशु को वायरल बुखार में बहुत आराम मिलेगा।

नींबू का रस और शहद का मिश्रण शिशु में वायरल फीवर के इलाज के लिए बहुत ही कारगर औषधि है।
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गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक मात्रा में विटामिन सी लेना, गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक हो सकता है। कुछ शोध में इस प्रकार के संभावनाओं का पता लगा है कि गर्भावस्था के दौरान सप्लीमेंट के रूप में विटामिन सी का आवश्यकता से ज्यादा सेवन समय पूर्व प्रसव (preterm birth) को बढ़ावा दे सकता है।
पोक्सो एक्ट बच्चों पे होने वाले यौन शोषण तथा लैंगिक अपराधों से उनको सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण अधिनियम है। 2012 में लागु हुआ यह संरक्षण अधिनियम एवं नियम, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पे हो रहे लैंगिक अपराधों पे अंकुश लगाने के लिए किया गया है। Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO) का उल्लेख सेक्शन 45 के सब- सेक्शन (2) के खंड “क” में मिलता है। इस अधिनियम के अंतर्गत 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन उत्पीडन करने वाले दोषी को मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान निर्धारित किया गया है।
बच्चों को उनके उम्र और वजन के अनुसार हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे संतुलित आहार के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों को 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरुरत पड़ती है। किशोर अवस्था के बच्चों को हर दिन 1300 मिग्रा, तथा व्यस्क और बुजुर्गों को 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम आहारों के माध्यम से लेने की आवश्यकता पड़ती है।
सुपरफूड हम उन आहारों को बोलते हैं जिनके अंदर प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। सुपर फ़ूड शिशु के अच्छी शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत पूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बच्चों को वो सभी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो शिशु के शारीर को अच्छी विकास के लिए जरुरी होता है।
मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। यह अधिकांश बदलाव शरीर में हो रहे हार्मोनअल (hormonal) परिवर्तन की वजह से होते हैं। और अगले कुछ दिनों में जब फिर से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य हो जाता है तो यह समस्याएं भी खत्म होनी शुरू हो जाती है। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो एक मां को अक्सर बहुत परेशान कर देती है। इन्हीं में से एक बदलाव है बार बार यूरिन होना। अगर आपने कुछ दिनों पहले अपने शिशु को जन्म दिया है तो हो सकता है आप भी बार-बार पेशाब आने की समस्या से पीड़ित हो।
शिशु के जन्म के पश्चात मां को अपनी खान पान (Diet Chart) का बहुत ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय पौष्टिक आहार मां की सेहत तथा बच्चे के स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी है। अगर आपके शिशु का जन्म सी सेक्शन के द्वारा हुआ है तब तो आपको अपनी सेहत का और भी ज्यादा ध्यान रखने की आवश्यकता। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद कौन सा भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर है।
शिशु का जन्म पूरे घर को खुशियों से भर देता है। मां के लिए तो यह एक जादुई अनुभव होता है क्योंकि 9 महीने बाद मां पहली बार अपने गर्भ में पल रहे शिशु को अपनी आंखों से देखती है।
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) से प्रभावित बच्चों को पढाई में बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है। ये बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) के लक्षणों का इलाज प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों पे ध्यान देने की ज़रुरत है। उन्हें डांटे नहीं वरन प्यार से सिखाएं और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करें।
शिशु में ठोस आहार की शुरुआत छेह महीने पूर्ण होने पे आप कर सकती हैं। लेकिन ठोस आहार शुरू करते वक्त कुछ महत्वपूर्ण बातों का ख्याल रखना जरुरी है ताकि आप के बच्चे के विकास पे विपरीत प्रभाव ना पड़े। ऐसा इस लिए क्यूंकि दूध से शिशु को विकास के लिए जरुरी सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं - लेकिन ठोस आहार देते वक्त अगर ध्यान ना रखा जाये तो भर पेट आहार के बाद भी शिशु को कुपोषण हो सकता है - जी हाँ - चौंकिए मत - यह सच है!
औसतन एक शिशु को दिन भर में 1000 से 1200 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है। शिशु का वजन बढ़ने के लिए उसे दैनिक आवश्यकता से ज्यादा कैलोरी देनी पड़ेगी और इसमें शुद्ध देशी घी बहुत प्रभावी है। लेकिन शिशु की उम्र के अनुसार उसे कितना देशी घी दिन-भर में देना चाहिए, यह देखिये इस तलिके/chart में।
शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र विटामिन डी का इस्तेमाल सूक्ष्मजीवीरोधी शक्ति (antibody) बनाने के लिए करता है। ये एंटीबाडी शिशु को संक्रमण से बचते हैं। जब शिशु के शरीर पे विषाणु और जीवाणु का आक्रमण होता है तो शिशु के शरीर में मौजूद एंटीबाडी विषाणु और जीवाणु से लड़ते हैं और उनके संक्रमण को रोकते हैं।
मौसम तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में अगर आप का बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसे जितना ज्यादा हो सके उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। जब शरीर को पूरा आराम मिलता है तो वो संक्रमण से लड़ने में ना केवल बेहतर स्थिति में होता है बल्कि शरीर को संक्रमण लगने से भी बचाता भी है। इसका मतलब जब आप का शिशु बीमार है तो शरीर को आराम देना बहुत महत्वपूर्ण है, मगर जब शिशु स्वस्थ है तो भी उसके शरीर को पूरा आराम मिलना बहुत जरुरी है।
आज के बदलते परिवेश में जो माँ-बाप समय निकल कर अपने बच्चों के साथ बातचीत करते हैं, उसका बेहद अच्छा और सकारात्मक प्रभाव उनके बच्चों पे पड़ रहा है। बच्चों की अच्छी परवरिश करने के लिए सिर्फ पैसों की ही नहीं वरन समय की भी जरुरत पड़ती है। बच्चे माँ-बाप के साथ जो क्वालिटी समय बिताते हैं, वो आप खरीद नहीं सकते हैं। बच्चों को जितनी अच्छे से उनके माँ-बाप समझ सकते हैं, कोई और नहीं।
सूजी का उपमा एक ऐसा शिशु आहार है जो बेहद स्वादिष्ट है और बच्चे बड़े मन से खाते हैं| यह झट-पैट त्यार हो जाने वाला शिशु आहार है जिसे आप चाहे तो सुबह के नाश्ते में या फिर रात्रि भोजन में भी परसो सकती हैं| शिशु आहार baby food for 9 month old baby
भारत में रागी को finger millet या red millet भी कहते हैं। रागी को मुख्यता महाराष्ट्र और कर्नाटक में पकाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे नाचनी भी कहा जाता है। रागी से बना शिशु आहार (baby food) बड़ी सरलता से बच्चों में पच जाता है और पौष्टिक तत्वों के मामले में इसका कोई मुकाबला नहीं।
माँ-बाप सजग हों जाएँ तो बहुत हद तक वे आपने बच्चों को यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं। भारत में बाल यौन शोषण से सम्बंधित बहुत कम घटनाएं ही दर्ज किये जाते हैं क्योँकि इससे परिवार की बदनामी होने का डर रहता है। हमारे भारत में एक आम कहावत है - 'ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।'
न्यूमोकोकल कन्जुगेटेड वैक्सीन (Knjugeted pneumococcal vaccine in Hindi) - हिंदी, - न्यूमोकोकल कन्जुगेटेड का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
अगर आप का शिशु बहुत ज्यादा उलटी करता है, तो आप का चिंता करना स्वाभाविक है। बच्चे के पहले साल में दूध पिने के बाद या स्तनपान के बाद उलटी करना कितना स्वाभाविक है, इसके बारे में हम आप को इस लेख में बताएँगे। हर माँ बाप जिनका छोटा बच्चा बहुत उलटी करता है यह जानने की कोशिश करते हैं की क्या उनके बच्चे के उलटी करने के पीछे कोई समस्या तो नहीं। इसी विषेय पे हम विस्तार से चर्चा करते हैं।
शोध (research studies) में यह पाया गया है की जेनेटिक्स सिर्फ एक करक, इसके आलावा और बहुत से करक हैं जो बढ़ते बच्चों के लम्बाई को प्रभावित करते हैं। जानिए 6 आसान तरीके जिनके द्वारा आप अपने बच्चे को अच्छी लम्बी पाने में मदद कर सकते हैं।