Category: स्वस्थ शरीर
By: Admin | ☺6 min read
आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटने के बल चलने का कोई फायदा है? पैरों पर चलने से पहले बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक का एक नियम है क्योंकि इससे शिशु के शारीर को अनेक प्रकार के स्वस्थ लाभ मिलते हैं जो उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।

इससे पहले की बच्चे पैरों के बल चलना सीखे, वे घुटनों के बल चलना सीखते हैं।
बच्चों को घुटने के बल चलते देखकर मां बाप को बहुत खुशी मिलती है। एक बार जब बच्चे घुटनों के बल चलना शुरू कर देते हैं तो घर के सभी सदस्यों के लिए यह काफी भागदौड़ का समय होता है और पूरा घर बच्चों की किल्कारियौं से भर जाता है।
ऐसे में कई बार हो सकता है आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटने के बल चलने का कोई फायदा है?
सच बात तो यह है कि जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो एक प्रकार से उनके शरीर का व्यायाम होता है। उनके पैरों में ताकत आती है और खड़े होकर चलने की क्षमता विकसित होती है।
लेकिन कई बार,
ऐसे बच्चों को भी देखने को मिलता है जो घुटनों के बल कभी चले ही नहीं, बल्कि सीधा चलना शुरू कर दिए। ऐसे में हम कई बार यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि क्या छोटे बच्चों का घुटनों के बल चलना जरूरी है?
तो चलिए इसमें हम इन्हीं बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे!
पैरों पर चलने से पहले बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक का एक नियम है। प्रकृति ने यह नियम हम मनुष्यों के लिए इसी उद्देश्य से बनाया है। 
पैरों के बल चलने से पहले, घुटनों के बल चलने से शिशु को अनेक प्रकार के स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। शिशु का घुटनों के बल चलना उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
जब बच्चे घुटनों के बल चलते हैं तो पैरों के साथ-साथ उनके हाथों का भी इस्तेमाल होता है। इस तरह शिशु के हाथ और पैर दोनों की हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूती मिलती है साथ ही उनका शरीर लचीला बनता है।

जब बच्चे अपने घुटनों के बल चलते हैं तो उनका पैर शरीर को मोड़ना, घुमाना साथ ही चलने और दौड़ने जैसी जरूरी प्रक्रिया को समझता है और सीखता है।
शिशु जब घुटनों के बल चलना शुरू करता है तो उसके शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम युक्त आहार की आवश्यकता पड़ती है।
अगर इस समय आप शिशु के आहार में ऐसे भोजन को सम्मिलित करें जिसे प्रचुर मात्रा में चींटियों को प्रोटीन और कैल्शियम मिले तो उसकी हड्डियां मजबूत बनेगी और उसकी मांसपेशियों का विकास बहुत तेजी से होगा।
शिशु के अच्छे मानसिक विकास के लिए यह जरूरी है कि वह खुद चीजों को करके सीखें। इसी के अंतर्गत प्राकृतिक ने शिशु के लिए घुटनों के बल चलने का नियम निर्धारित किया है।
वरना इस संसार में ऐसे भी जीव है जो जन्म के तुरंत बाद कूदना शुरू कर देते हैं, उदाहरण के लिए बकरी, हिरन, गाय इत्यादि।

जब शिशु पैरों के बल चलता है तो उसमें गति और स्थिति के नियमों को समझने की क्षमता बढ़ती है। इसके समाज से शिशु अपना संतुलन बनाना सीखना है।
शिशु किस प्रक्रिया से अपनी आंखों और हाथों की गति में सामंजस्य स्थापित करना भी सीखता है। घुटनों के बल चलने के दौरान क्योंकि अपने आसपास की चीजों से संबंधित समझ बढ़ती है।
घुटनों के बल चलते वक्त जब शिशु एक स्थान से दूसरे स्थान जाता है तो उसमें आंखों और दृष्टि के नियमों की समझ बढ़ती है। इसके साथ ही उसकी दृष्टि की क्षमता का विकास होता है।

इससे पहले नवजात अवस्था में जब शिशु केवल गोद में रहता था तो वह केवल अपने आसपास की वस्तुओं को दूर से देख सकता था लेकिन घुटनों के बल चलने के दौरान उसमें पास और दूरी की समझ का विकास पड़ता है। या यूं कहें कि उसमें दूरी से संबंधित समझ का विकास होता है।
इस समझ के आधार पर वह यह निर्णय करना सीखता है कि उसे किस गति से कहां पर पहुंचना है कि शरीर को नुकसान ना पहुंचे तथा दूरी के आधार पर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचने पर कितना समय लगेगा।
बच्चों पर हुए अनेक शोध में यह बात सामने आई है कि बच्चों का दुनियावी चीजों से संबंधित विकास सबसे ज्यादा बच्चों का घुटने के बल चलने के दौरान हुआ।

यह शिशु की जिंदगी का वह महत्वपूर्ण पड़ाव है जब शिशु का दाया और बाया मस्तिष्क आपस में सामंजस्य स्थापित करना सीखता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय शिशु एक साथ कई काम कर रहा होता है जिससे उसके दिमाग के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल हो रहा होता है।
उदाहरण के लिए जब शिशु घुटनों के बल चलता है तो वह अपने हाथ और पैर दोनों का इस्तेमाल करता है तथा तापमान, दूरी, गहराई जैसे ना जाने अनेक चीजों को भी अपने तजुर्बे से इस्तेमाल करना सीखता है। इस समय शिशु के दिमाग का विकास अपने चरम पर होता है।
घुटनों के बल चलने से शिशु के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है क्योंकि वह अपनी जिंदगी के बहुत से दैनिक फैसले खुद लेना शुरू करता है।

उदाहरण के लिए दूरी या गहराई के आधार पर वह यह निर्णय लेना शुरू करता है कि उसे किस दिशा में घुटनों के बल आगे बढ़ना है या उसे कब रुकना है।
इस तरह से उसे हर शारीरिक गतिविधि के लिए कुछ ना कुछ निर्णय लेना पड़ता है। इस तरह समय से निर्णय लेने से उसमें आत्मविश्वास के साथ साथ सोचने और विचार करने की क्षमता का भी विकास होता है।
घुटनों के बल चलने के दौरान कई बार बच्चों को चोट भी लगती हो। इस प्रकार की और दर्द के आधार पर अपने जीवन में फिजिकल।
जिंदगी के इस प्रकार के छोटे-छोटे रिस्क उसे आगे चलकर उसमे बड़ा जोखिम लेने का साहस पैदा करते हैं और साथ ही असफल होने की स्थिति में उसके अंदर पुनः प्रयास करने की समझ और साहस विकसित करते हैं। इस प्रकार का समय और आत्मविश्वास दोनों आगे चलकर किसी को पैरों के बल चलने में मदद करते हैं।
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बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
शिशु की तिरछी आंखों (Squint eyes) को एक सीध में किस तरह लाया जाये और बच्चे को भैंगापन से बचने के तरीकों के बारे में जाने इस लेख में। अधिकांश मामलों में भेंगेपन को ठीक करने के लिए किसी विशेष इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है। समय के साथ यह स्वतः ही ठीक हो जाता है - लेकिन शिशु के तीन से चार महीने होने के बाद भी अगर यह ठीक ना हो तो तुरंत शिशु नेत्र विशेषज्ञ की राय लें।
बढ़ते बच्चों के लिए विटामिन और मिनिरल आवश्यक तत्त्व है। इसके आभाव में शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है। अगर आप अपने बच्चों के खान-पान में कुछ आहारों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चों के शारीर में विटामिन और मिनिरल की कमी होने से बचा सकती हैं।
गणतंत्र दिवस एक खुबसूरत अवसर है जिसका लाभ उठाकर सिखाएं बच्चों को आजादी का महत्व और उनमें जगाएं देश के संविधान के प्रति सम्मान। तभी देश का हर बच्चा बड़ा होने बनेगा एक जिमेदार और सच्चा नागरिक।
6 महीने की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच होनी चाहिए। जबकि 6 महीने के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
शुद्ध देशी घी शिशु को दैनिक आवश्यकता के लिए कैलोरी प्रदान करने का सुरक्षित और स्वस्थ तरीका है। शिशु को औसतन 1000 से 1200 कैलोरी की जरुरत होती है जिसमे 30 से 35 प्रतिशत कैलोरी उसे वासा से प्राप्त होनी चाहिए। सही मात्रा में शुद्ध देशी घी शिशु के शारीरिक और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देता है और शिशु के स्वस्थ वजन को बढ़ता है।
मौसम तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में अगर आप का बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसे जितना ज्यादा हो सके उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। जब शरीर को पूरा आराम मिलता है तो वो संक्रमण से लड़ने में ना केवल बेहतर स्थिति में होता है बल्कि शरीर को संक्रमण लगने से भी बचाता भी है। इसका मतलब जब आप का शिशु बीमार है तो शरीर को आराम देना बहुत महत्वपूर्ण है, मगर जब शिशु स्वस्थ है तो भी उसके शरीर को पूरा आराम मिलना बहुत जरुरी है।
शिशु को 6 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेपेटाइटिस बी और इन्फ्लुएंजा से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु को 10 सप्ताह (ढाई माह) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।
अगर आप का शिशु जब भी अंडा खाता है तो बीमार पड़ जाता है या उसके शारीर के लाल दाने निकल आते हैं तो इसका मतलब यह है की आप के शिशु को अंडे से एलर्जी है। अगर आप के शिशु को अंडे से एलर्जी की समस्या है तो आप किस तरह अपने शिशु को अंडे की एलर्जी से बचा सकती है और आप को किन बातों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
नवजात शिशु दो महीने की उम्र से सही बोलने की छमता का विकास करने लगता है। लेकिन बच्चों में भाषा का और बोलने की कला का विकास - दो साल से पांच साल की उम्र के बीच होता है। - बच्चे के बोलने में आप किस तरह मदद कर सकते हैं?
संगती का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| बच्चे दोस्ती करना सीखते हैं, दोस्तों के साथ व्यहार करना सीखते हैं, क्या बात करना चाहिए और क्या नहीं ये सीखते हैं, आत्मसम्मान, अस्वीकार की स्थिति, स्कूल में किस तरह adjust करना और अपने भावनाओं पे कैसे काबू पाना है ये सीखते हैं| Peer relationships, peer interaction, children's development, Peer Influence the Behavior, Children's Socialization, Negative Effects, Social Skill Development, Cognitive Development, Child Behavior
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कुछ सॉफ्टवेयर हैं जो पेरेंट्स की मदद करते हैं बच्चों को इंटरनेट की जोखिमों से बचाने में। इन्हे पैरेंटल कन्ट्रो एप्स (parental control apps) के नाम से जाना जाता है। हम आपको कुछ बेहतरीन (parental control apps) के बारे में बताएँगे जो आपके बच्चों की सुरक्षा करेगा जब आपके बच्चे ऑनलाइन होते हैं।
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बच्चों का नाख़ून चबाना एक बेहद आम समस्या है। व्यस्क जब तनाव में होते हैं तो अपने नाखुनो को चबाते हैं - लेकिंग बच्चे बिना किसी वजह के भी आदतन अपने नाखुनो को चबा सकते हैं। बच्चों का नाखून चबाना किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा नहीं करता है। लेकिन यह जरुरी है की बच्चे के नाखून चबाने की इस आदत को छुड़ाया जाये नहीं तो उनके दातों का shape बिगड़ सकता है। नाखुनो में कई प्रकार के बीमारियां अपना घर बनाती हैं। नाख़ून चबाने से बच्चों को कई प्रकार के बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है, पेट के कीड़े की समस्या तथा पेट दर्द भी कई बार इसकी वजह होती है।
हर प्रकार के आहार शिशु के स्वस्थ और उनके विकास के लिए ठीक नहीं होता हैं। जिस तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए सही तो उसी तरह कुछ आहार शिशु के स्वस्थ के लिए बुरे भी होते हैं। बच्चों के आहार को ले कर हर माँ-बाप परेशान रहते हैं।क्योंकि बच्चे खाना खाने में बहुत नखड़ा करते हैं। ऐसे मैं अगर बच्चे किसी आहार में विशेष रुचि लेते हैं तो माँ-बाप अपने बच्चे को उसे खाने देते हैं, फिर चाहे वो आहार शिशु के स्वस्थ के लिए भले ही अच्छा ना हो। उनका तर्क ये रहता है की कम से कम बच्चा कुछ तो खा रहा है। लेकिन सावधान, इस लेख को पढने के बाद आप अपने शिशु को कुछ भी खिलने से पहले दो बार जरूर सोचेंगी। और यही इस लेख का उद्देश्य है।
आपके बच्चे के लिए किसी भी नए खाद्य पदार्थ को देने से पहले (before introducing new food) अपने बच्चे के भोजन योजना (diet plan) के बारे में चर्चा। भोजन अपने बच्चे को 5 से 6 महीने पूरा होने के बाद ही देना शुरू करें। इतने छोटे बच्चे का पाचन तंत्र (children's digestive system) पूरी तरह विकसित नहीं होता है
छोटे बच्चों के लिए शहद के कई गुण हैं। शहद बच्चों को लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शदह मैं पाए जाने वाले विटामिन और मिनिरल जखम को जल्द भरने में मदद करते है, लिवर की रक्षा करते हैं और सर्दियों से बचते हैं।