Category: स्वस्थ शरीर
By: Salan Khalkho | ☺4 min read
अगर 6 वर्ष से बड़ा बच्चा बिस्तर गिला करे तो यह एक गंभीर बीमारी भी हो सकती है। ऐसी स्थिति मैं आपको डॉक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए। समय पर डॉक्टरी सलाह ना ली गयी तो बीमारी बढ़ भी सकती है।

अक्सर कई माँ बाप बच्चे के बिस्तर पर पेशाब करने से हैं परेशान होते हैं। बच्चों का बिस्तर पे पिशाब करना (bed wetting) शिशु करना एक आम समस्या है। ज्यादातर यह समस्या 4 से 5 वर्ष से काम आयु के बच्चों में देखने को मिलती है। बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं वे अपने मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सिख लेते हैं।
अगर बच्चा बिस्तर पर पेशाब कर देता है तो उसे कभी ना डाटें। कोई बच्चा जान बुझ कर बिस्तर पे पेशाब नहीं करता।
बिस्तर पे पिशाब करना (bed wetting) कोई गंभीर समस्या नहीं है। हालाँकि कुछ मामलों में 15 से 20 वर्ष के आयु के बच्चों में भी ये समस्या देखने को मिलती है। ऐसी इस्थिति मैं इसे एक बीमारी माना जाता है। बड़ी उम्र के बच्चे इस बीमारी के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं जिसकी वजह से उनका सही समय पे इलाज नहीं हो पाता है।
छोटे बच्चे अगर बिस्तर गिला करें तो उसे बीमारी नहीं मानना चाहिए। कुछ समय के बाद वे अपने मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सिख जायेंगे और यह समस्या स्वतः समाप्त हो जाएगी।
अगर 6 वर्ष से बड़ा बच्चा बिस्तर गिला करे तो यह एक गंभीर बीमारी भी हो सकती है। ऐसी स्थिति मैं आपको डॉक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए। समय पर डॉक्टरी सलाह ना ली गयी तो बीमारी बढ़ भी सकती है।
अगर आपका बच्चा Bed पर Urine-पेशाब करता है तो कुछ तरीके हैं जिनके मदद से आप बच्चे का बिस्तर पर पेशाब करना रोक सकती हैं।

तिल और गुड़
तिल और गुड़ को साथ मिला कर उसका मिश्रण बना लें। इसे खिलने से बच्चे का बिस्तर पे पिशाब करने का रोग ख़तम हो जायेगा। तिल और गुड़ के इस मिश्रण में अजवायन का चूर्ण मिलकर बच्चे को खिलने से और भी कई शारीरिक फायदे पहुँचते हैं।
आवंला
अंदाज से 10 ग्राम आवंला और 10 ग्राम काला जीरा साथ मिलकर पीस लें। इसमें लगभग इतनी ही मात्रा में चीनी पीस कर मिला दें। इस मिश्रण को हर दिन बच्चे को पानी के साथ खिलने से बच्चे को बिस्तर पे पिशाब नहीं होगा। आवंला को बारीक़ पीस कर रोजाना शहद के साथ 3 ग्राम सुबह और शाम खिलने से भी लाभ पहुँचता है।
मुनक्का
हर दिन पांच मुनक्का बच्चों को खिलने से बच्चों का बिस्तर में पेशाब करने का रोग ख़तम हो जाता है।
अखरोट और किशमिश
प्रतिदिन दो अखरोट और बीस किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है।
दूध में एक चम्मच शहद
एक कप ठण्डे फीके दूध में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चालिस दिनों तक बच्चे को पिलाइए और तिल-गुड़ का एक लड्डू रोज खाने को दीजिए। अपने बच्चे को लड्डू चबा-चबाकर खाने के लिए प्रोत्हासित कीजिये और फिर शहद वाला एक कप दूध पीने के लिए दें। बच्चे को खाने के लिए लड्डू सुबह के समय दें। लड्डू के सेवन से कोई नुकसान नहीं होता। आप जब तक चाहें बच्चे को इसका सेवन करा सकते हैं।
6 साल से बड़े उम्र के बच्चे अगर बिस्तर गिला करें तो उसका कारण जानना बेहद जरुरी है। बड़े बच्चों का बिस्तर पे पेशाब करना किसी बीमारी के संकेत भी हो सकते हैं। कुछ संभावित बिमारियों के बारे में आपको जानना जरुरी है जिनकी वजह से बच्चों में बिस्तर गिला करने की समस्या पैदा हो जाती है।
छोटा मूत्राशय
बच्चों का शरीर वस्यकों के शरीर की तरह पूरी तरह विकसित नहीं होता। मूत्राशय उनमें से एक है। हर बच्चे का शरीर एक तरह से विकसित नहीं होता। कुछ बच्चे जल्दी विकसित होते हैं और कुछ बच्चे समय लेते हैं। कई बच्चे जब छोटे होते हैं तो उनका मूत्राशय सामान्य से छोटा होता है। इस वजह से वे रात भर पेशाब करते रहते हैं और बिस्तर गिला करते रहते हैं।
मूत्र संक्रमण
अगर बच्चे को मूत्र संक्रमण (urine infection) हो जाये तो बच्चे को बार बार पेशाब लगेगा। रात को सोते वक्त बच्चा पेशाब को नियंत्रित नहीं कर पायेगा। मूत्र संक्रमण में बच्चे को पेशाब में जलन, बुखार, बार बार पेशाब, और पेशाब की मात्रा में कमी आता है।
अनुवांशिकता (hereditary)
एक अध्यन के अनुसार, 70 प्रतिशत बच्चे जिनमे पेशाब करने की समस्या पाई जाती है यह भी पाया गया की उनके माँ या बाप भी बचपन में बिस्तर पे पेशाब करते थे। DNA में मौजूद chromosome के द्वारा यह शारीरिक गुण माँ या बाप से बच्चे में आता है।
हॉर्मोन
इंसान के शरीर में पेशाब का नियंत्रण हॉर्मोन के द्वारा होता। इस हॉर्मोन को Anti Diuretic हॉर्मोन कहा जाता है। इस हॉर्मोन का कार्य होता है की किडनी को पेशाब के आने का संकेत दे। इस हॉर्मोन की कमी कारण किडनी को पेशाब के आने का समय पे पता ही नहीं चल पता और बच्चा रात को सोते वक्त बिस्तर पे पेशाब कर देता है।
मानसिक तनाव के कारण
कभी कभी बच्चा जब अत्यधिक तनाव में भी होता है तो बिस्तर पे पेशाब कर देता है। बच्चे को यह तनाव किसी भी कारण से हो सकता है जैसे की डांट, मार, घर से दूर रहना, डर लगना, अकेले सोना, परीक्षा में अच्छे मार्क्स स्कोर करना इत्यादि।
तांत्रिक प्रणाली का सही तरीके से काम ना करना
कई बार जब बच्चों की तांत्रिक प्रणाली सही ढंग से कार्य नहीं करती तो बच्चों को इस परिशानी को झेलना पड़ता है। जब तांत्रिक प्रणाली सही ढंग से कार्य नहीं करता तो मूत्राशय भरा होने के बावजूद बच्चों के दिमाग को सही समय पे सन्देश नहीं मिल पाता और बच्चा बिस्तर के पेशाब कर देता है।
मधुमेह
मधुमेह की समस्या काफी बढ़ती जा रही है। यह एक गंभीर समस्या है। सिर्फ वयस्कों में ही नहीं वरन मधुमेह की समस्या अब बच्चों में भी आम बात होती जा रही है। मधुमेह से पीड़ित बच्चे अक्सर बिस्तर में पेशाब कर देते हैं। खून के जाँच के द्वारा मधुमेह के बारे में पता लगाया जा सकता है की बच्चा मधुमेह से ग्रसित है की नहीं।
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ताजे दूध की तुलना में UHT Milk ना तो ताजे दूध से बेहतर है और यह ना ही ख़राब है। जितना बेहतर तजा दूध है आप के शिशु के लिए उतना की बेहतर UHT Milk है आप के बच्चे के लिए। लेकिन कुछ मामलों पे अगर आप गौर करें तो आप पाएंगे की गाए के दूध की तुलना में UHT Milk आप के शिशु के विकास को ज्यादा बेहतर ढंग से पोषित करता है। इसका कारण है वह प्रक्रिया जिस के जरिये UHT Milk को तयार किया जाता है। इ लेख में हम आप को बताएँगे की UHT Milk क्योँ गाए के दूध से बेहतर है।
गर्भावस्था में महिलाओं को पेट के साथ साथ स्तनों के पास वाली त्वचा में खुजली का सामना करना पड़ता है। यह इस लिए होता है क्यूंकि गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक हार्मोनल परिवर्तन और त्वचा के खिचाव की वजह से महिलाओं की त्वचा अत्यंत संवेदनशील हो जाती है जिस वजह से उन्हें खुजली या अन्य त्वचा सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गर्भवती स्त्री के गर्भ में जैसे जैसे शिशु का विकास होता है और वो आकर में बढता है, पेट की त्वचा बहुत स्ट्रेच हो जाती है। पेट पे रक्त संचार भी बढ़ जाता है। पेट की त्वचा के स्ट्रेच होने और रक्त संचार के बढ़ने - दोनों - की वजह से भी पेट में तीव्र खुजली का सामना करना पड़ जाता है। इस लेख में हम आप को विस्तार से बताएँगे की खुजली की समस्या को गर्भावस्था के दौरान किस तरह से कम किया जा सकता है और इनके क्या क्या मुख्या वजह है।
आसन घरेलु उपचार दुवारा अपने बच्चे के शारीर से चेचक, चिकन पॉक्स और छोटी माता, बड़ी माता के दाग - धब्बों को आसानी से दूर करें। चेचक में शिशु के शारीर पे लाल रंग के दाने निकल, लेकिन अफ़सोस की जब शिशु पूरितः से ठीक हो जाता है तब भी पीछे चेचक - चिकन पॉक्स के दाग रह जाते हैं। चेचक के दाग के निशान चेहरे और गर्दन पर हो तो वो चेहरे की खूबसूरती को बिगाड़ देते है। लेकिन इन दाग धब्बों को कई तरह से हटाया जा सकता है - जैसे की - चिकन पॉक्स के दाग हटाने के लिए दवा और क्रीम इस्तेमाल कर सकती हैं और घरेलु प्राकृतिक उपचार भी कर सकती हैं। हम आप को इस लेख में सभी तरह के इलाज के बारे में बताने जा रहें हैं।
विटामिन ई - बच्चों में सीखने की क्षमता को बढ़ता है। उनके अंदर एनालिटिकल (analytical) दृष्टिकोण पैदा करता है, जानने की उक्सुकता पैदा करता है और मानसिक कौशल संबंधी छमता को बढ़ता है। डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को ऐसे आहार लेने की सलाह देते हैं जिसमें विटामिन इ (vitamin E) प्रचुर मात्रा में होता है। कई बार अगर गर्भवती महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई नहीं मिल रहा है तो विटामिन ई का सप्लीमेंट भी लेने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि विटामिन ई की कमी से बच्चों में मानसिक कौशल संबंधी विकार पैदा होने की संभावनाएं पड़ती हैं। प्रेग्नेंट महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई अगर मिले तो उसकी गर्भ में पल रहे शिशु का तांत्रिका तंत्र संबंधी विकार बेहतर तरीके से होता है।
शिशु के जन्म के बाद यानी डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या देखी गई है। हालांकि बाजार में बाल झड़ने को रोकने के लिए बहुत तरह की दवाइयां उपलब्ध है लेकिन जब तक महिलाएं अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही हैं तब तक यह सलाह दी जाती है कि जितना कि जितना ज्यादा हो सके दवाइयों का सेवन कम से कम करें। स्तनपान कराने के दौरान दवाइयों के सेवन से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
अगर आप अपने बच्चे के व्यहार को लेकर के परेशान हैं तो चिंता की कोई बात नहीं है। बच्चों को डांटना और मरना विकल्प नहीं है। बच्चे जैसे - जैसे उम्र और कद काठी में बड़े होते हैं, उनके व्यहार में अनेक तरह के परिवेर्तन आते हैं। इनमें कुछ अच्छे तो कुछ बुरे हो सकते हैं। लेकिन आप अपनी सूझ बूझ के से अपने बच्चे में अच्छा व्यहार (Good Behavior) को विकसित कर सकती हैं। इस लेख में पढ़िए की किस तरह से आप अपने बच्चे में अच्छा परिवर्तन ला सकती हैं।
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं शिशु की खांसी, सर्दी, जुकाम और बंद नाक का इलाज किस तरह से आप घर के रसोई (kitchen) में आसानी से मिल जाने वाली सामग्रियों से कर सकती हैं - जैसे की अजवाइन, अदरक, शहद वगैरह।
शिशु को बहुत छोटी उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात शिशु से ले कर एक साल तक की उम्र के बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता ही वो अपने शरीर का तापमान वयस्कों की तरह नियंत्रित कर सकें। इसलिए यह जाना बेहद जरुरी है की बच्चे को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है।
घर पे करें तयार झट से शिशु आहार - इसे बनाना है आसन और शिशु खाए चाव से। फ्राइड राइस में मौसम के अनुसार ढेरों सब्जियां पड़ती हैं। सब्जियौं में कैलोरी तो भले कम हो, पौष्टिक तत्त्व बहुत ज्यादा होते हैं। शिशु के मानसिक और शारीरक विकास में पौष्टिक तत्वों का बहुत बड़ा यौग्दन है।
शिशु में हिचकी आना कितना आम बात है तो - सच तो यह है की एक साल से कम उम्र के बच्चों में हिचकी का आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हिचकी आने पे डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हिचकी को हटाने के बहुत से घरेलू नुस्खे हैं। अगर हिचकी आने पे कुछ भी न किया जाये तो भी यह कुछ समय बाद अपने आप ही चली जाती है।
Indian baby sleep chart से इस बात का पता लगाया जा सकता है की भारतीय बच्चे को कितना सोने की आवश्यकता है।। बच्चों का sleeping pattern, बहुत ही अलग होता है बड़ों के sleeping pattern की तुलना मैं। सोते समय नींद की एक अवस्था होती है जिसे rapid-eye-movement (REM) sleep कहा जाता है। यह अवस्था बच्चे के शारीरिक और दिमागी विकास के लहजे से बहुत महत्वपूर्ण है।
अगर आप के बच्चे को बुखार है और बुखार में तेज़ दर्द भी हो रहा है तो तुरंत अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएँ। बुखार में तेज़ दर्द में अगर समय रहते सही इलाज होने पे बच्चा पूरी तरह ठीक हो सकता है। मगर सही इलाज के आभाव में बच्चे की हड्डियां तक विकृत हो सकती हैं।
जन्म के बाद गर्भनाल की उचित देखभाल बहुत जरुरी है। अगर शिशु के गर्भनाल की उचित देखभाल नहीं की गयी तो इससे शिशु को संक्रमण भी हो सकता है। नवजात शिशु में संक्रमण से लड़ने की छमता नहीं होती है। इसीलिए थोड़ी सी भी असावधानी बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
बच्चों में जरूरत से ज्यादा नमक और चीनी का सावन उन्हें मोटापा जैसी बीमारियोँ के तरफ धकेल रहा है| यही वजह है की आज हर 9 मैं से एक बच्चे का रक्तचाप उसकी उम्र के हिसाब से अधिक है| इसकी वजह बच्चों के आहार में नमक की बढ़ी हुई मात्रा|
मस्तिष्क ज्वर/दिमागी बुखार (Japanese encephalitis - JE) का वैक्सीन मदद करता है आप के बच्चे को एक गंभीर बीमारी से बचने में जो जापानीज इन्सेफेलाइटिस के वायरस द्वारा होता है। मस्तिष्क ज्वर मछरों द्वारा काटे जाने से फैलता है। मगर अच्छी बात यह है की इससे वैक्सीन के द्वारा पूरी तरह बचा जा सकता है।
हर मां बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में तेज निकले। लेकिन शिशु की बौद्धिक क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है जिस में से एक है शिशु का पोषण।अगर एक शोध की मानें तो फल और सब्जियां प्राकृतिक रूप से जितनी रंगीन होती हैं वे उतना ही ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। रंग बिरंगी फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में बीटा-कैरोटीन, वीटामिन-बी, विटामिन-सी के साथ साथ और भी कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं।
पांच दालों से बनी खिचड़ी से बच्चो को कई प्रकार के पोषक तत्त्व मिलते हैं जैसे की फाइबर, विटामिन्स, और मिनरल्स (minerals)| मिनरल्स शरीर के हडियों और दातों को मजबूत करता है| यह मेटाबोलिज्म (metabolism) में भी सहयोग करता है| आयरन शरीर में रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है और फाइबर पाचन तंत्र को दरुस्त रखता है|
बच्चों को गोरा करने के कुछ तरीके हैं (rang gora karne ka tarika) जिनके इस्तेमाल से आप अपने बच्चे को जीवन भर के लिए साफ और गोरी त्वचा दे सकतें हैं। हर माँ आपने बच्चों को लेके बहुत सी चीज़ों के लिए चिंतित रहती है। उनमें से एक है बच्चे की त्वचा। अक्सर मायें चाहती हैं की उनके बच्चे की त्वचा मे कोई दाग न हो।
आपके बच्चों में अच्छी आदतों का होना बहुत जरुरी है क्योँकि ये आप के बच्चे को न केवल एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है बल्कि एक अच्छी सेहत भरी जिंदगी जीने में भी मदद करता है।