Category: प्रेगनेंसी
By: Admin | ☺9 min read
अक्सर गर्भवती महिलाएं इस सोच में रहती है की उनके शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन या नार्मल डिलीवरी में से क्या बेहतर है। इस लेख में हम आप को दोनों के फायेदे और नुक्सान के बारे में बताएँगे ताकि दोनों में से बेहतर विकल्प का चुनाव कर सकें जो आप के लिए और आप के शिशु के स्वस्थ के लिए सुरक्षित हो।
शिशु का जन्म इस संसार में दो तरीकों से होता है - या तो सिजेरियन (सी-सेक्शन) डिलीवरी के द्वारा या फिर नॉर्मल डिलीवरी के द्वारा।
शिशु के जन्म के लिए दोनों में से किस विधि का इस्तेमाल किया जाएगा - यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों में से कौन सी विधि मां और जन्म लेने वाले शिशु दोनों के लिए सबसे सुरक्षित रहेगी।
कई बार डॉक्टर शिशु के जन्म के लिए सिजेरियन डिलीवरी का निर्णय लेते हैं जब किन्ही चिकित्सीय कारणों से नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं है या फिर नॉर्मल डिलीवरी में मां की सेहत को खतरा हो सकता है।
नॉर्मल डिलीवरी में शिशु का जन्म गर्भवती महिला के योनि मार्ग के द्वारा कराया जाता है। जबकि सिजेरियन (सी-सेक्शन) डिलीवरी में गर्भवती महिला के पेट को ऑपरेशन के द्वारा खोल करके उसके गर्भाशय में से बच्चे को निकाला जाता है।
जब किसी चिकित्सीय कारणों के द्वारा नॉर्मल डिलीवरी में शिशु और मां दोनों की जान को या सेहत को अगर खतरा है तो उस स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी का रास्ता अपनाया जाता है।
आज के दौर में सिजेरियन डिलीवरी एक बहुत ही आम बात है। इस संसार में जन्म लेने वाले हर दो में से एक बच्चे का जन्म सिजेरियन डिलीवरी के द्वारा होता है।
यह शिशु के जन्म की वह प्रक्रिया है जिसमें शिशु का जन्म गर्भवती महिला के योनि द्वार के द्वारा होता है। महिलाओं की अवधारणा है कि योनि प्रसव के द्वारा शिशु का जन्म एक प्राकृतिक अनुभव है क्योंकि इससे शिशु को जन्म देने वाली महिला अनुभव कर सकती है। इसमें शिशु का जन्म ठीक उसी तरह से होता है जिस प्रकार से प्रकृति ने इसे निर्धारित किया है।
सिजेरियन डिलीवरी शिशु जन्म की वह प्रक्रिया है जिसमें शिशु का जन्म योनिमार्ग की बजाए गर्भवती महिला के पेट का ऑपरेशन करके किया जाता है।
नॉर्मल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी शिशु तथा मां दोनों की स्वस्थ के लिए बेहद सुरक्षित है। अधिकांश मामलों में सिजेरियन डिलीवरी पहले से निर्धारित होता है।
इसमें शिशु की डिलीवरी का दिन और समय दोनों निर्धारित होते हैं। इस वजह से शिशु को जन्म देने वाली मां जन्म से संबंधित तैयारियां पहले से कर सकती हैं। इस मामले में यह काफी सुविधाजनक है।
नॉर्मल डिलीवरी से शिशु का जन्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह बहुत ही कठिन प्रक्रिया है। इसमें एक मां को बहुत ही असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
लेकिन फिर भी इसके लाभ अनेक है। सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले अगर शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ है तो डिलीवरी के बाद मां को अस्पताल में रहकर रिकवर होने में बहुत कम समय लगता है।
नॉर्मल डिलीवरी से 1 महीना 24 घंटे से 48 घंटे के अंदर घर जाने में सक्षम हो जाती है। शिशु के जन्म के बाद अगर जन्म देने वाली महिला की स्वास्थ्य स्थिति बेहतर है तो उसे अस्पताल जल्दी घर जाने की अनुमति दे देता है।
लेकिन सिजेरियन डिलीवरी में पेट के ऑपरेशन के द्वारा शिशु का जन्म होता है और इस वजह से पेट की जख्मों को भरने में थोड़ा समय लगता है। जिस वजह से शिशु के जन्म के बाद मां को कुछ समय अस्पताल में बिताना पड़ता है।
नॉर्मल डिलीवरी का एक फायदा यह भी है कि इसमें शिशु के जन्म के लिए गर्भवती महिला के पीठ को पीड़ा नहीं जाता है।
इसका मतलब नॉर्मल डिलीवरी में महिला सिजेरियन डिलीवरी के खतरों से सुरक्षित रहती है। उदाहरण के लिए सिजेरियन डिलीवरी के बाद गंभीर रक्तस्राव, जलन, संक्रमण, और कई महीनों तक टांको में दर्द की समस्या रह सकती है।
नॉर्मल डिलीवरी के तुरंत बाद मां अपने शिशु को स्तनपान करा सकती है। लेकिन सिजेरियन डिलीवरी के तुरंत बाद शिशु को स्तनपान कराना बहुत तकलीफ में हो सकता है यह कुछ समय तक नामुमकिन भी हो सकता है।
सिजेरियन डिलीवरी की तुलना में नार्मल डिलीवरी में शिशु को अपनी मां के साथ प्रारंभिक संपर्क थोड़ा पहले मिल जाता है इस वजह से उसकी मां अपने नवजात बच्चे को जल्दी स्तनपान कराना शुरू कर सकती है।
योनि मार्ग से प्रसव के दौरान, इस बात की संभावना रहती है कि योनीमार्ग के चारों ओर की मांसपेशियां नवजात शिशु के फेफड़ों में पाए जाने वाले द्रव को निचोड़ने का काम करेंगे।
इससे शिशु को जन्म के समय सांस लेने की समस्या कम रहेगी। इसी के साथ योनि मार्ग से जन्म लेने वाले शिशुओं को अच्छी जीवाणुओं की एक प्रारंभिक खुराक भी प्राप्त हो जाती है। यह बच्चों को संक्रमण से बचाती है और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है।
नॉर्मल डिलीवरी के अपने फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
नॉर्मल डिलीवरी में शिशु का जन्म महिला के योनि मार्ग के द्वारा होता है। इस वजह से योनि के चारों ओर की त्वचा और उत्तकों में खिंचाव पड़ जाते हैं।
कुछ स्थिति में यह फट भी सकते हैं। और ऐसा होने पर महिला को टांके की आवश्यकता भी हो सकती है। कुछ गंभीर परिस्थितियों में मूत्र और आंतों से संबंधित अंगों पर अत्यधिक जोर पड़ सकता है, उसकी मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं और उन्हें चोट पीना सकती है।
नॉर्मल डिलीवरी से संबंधित अध्ययनों में पता चला है कि जिन महिलाओं में योनि मार्ग के द्वारा अपने शिशु का प्रसव कराया है आगे चलकर के उनके आंत्र या मूत्र को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियां कमजोर पड़ गई है और नियंत्रण से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ा है।
नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिला को गुदा और योनिमुख के बीच का भाग - जिसे पेरिनेम - इसमें काफी दर्द रहने की समस्या हो सकती है।
भारत में हर साल करीब 45,000 महिलाएं की मौत सिजेरियन डिलीवरी के वजह से होती है। ऑपरेशन के बाद अगर साफ सफाई का अच्छा ध्यान नहीं रखा जाए तो संक्रमण हो सकता है। इसे 'सेप्सिस' कहते हैं।
विकसित देशों की तुलना में, भारत में सेप्सिस की घटनाएं बहुत ज्यादा देखने को मिलती। भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में, सेप्सिस तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
ऑपरेशन के दौरान अगर साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाए तो सिजेरियन डिलीवरी एक बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है। सच बात तो यह है कि सिजेरियन डिलीवरी के द्वारा मौत की घटना उन्हीं नहीं चाहिए।
शिशु का जन्म एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है। हमारे शरीर की संरचना इस तरह से हुई है कि यह एक शिशु को सुरक्षित रूप से जन्म दे सकें।
यह हमारे शरीर का प्राकृतिक रूप से प्रजनन का हिस्सा है। अधिकांश मामलों में नॉर्मल डिलीवरी द्वारा शिशु का जन्म कराने में मां को तथा बच्चे को दोनों को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं रहता है। विशेषकर अगर डिलीवरी के लिए किसी बाहरी तत्वों का इस्तेमाल नहीं किया गया है तो।
हलाकि नॉर्मल डिलीवरी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है फिर भी इसके कुछ खतरे हैं। नॉर्मल डिलीवरी के खतरों को और सिजेरियन ऑपरेशन के द्वारा किए गए डिलिवरी के खतरों की तुलना करके आप अपने शिशु के जन्म के लिए, एक बेहतर निर्णय ले सकती हैं।
तुलनात्मक रूप से नार्मल डिलीवरी ज्यादा सुरक्षित है अगर इसकी तुलना सिजेरियन डिलीवरी से करें तो।
शिशु के जन्म के लिए नॉर्मल डिलीवरी हर मामले में एक बेहतर विकल्प है। अगर आप के पहले बच्चे का जन्म सिजेरियन डिलीवरी के द्वारा हुआ है और आप दूसरे बच्चे के लिए नॉर्मल डिलीवरी प्लान करने का मन बना रही है तो यह पूरी तरह संभव है।
लेकिन इसके लिए आपको कुछ तैयारियां करनी पड़ेगी और कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा जिनके बारे में हम आपको नीचे बताएंगे।
नॉर्मल डिलीवरी में गर्भवती महिला को बहुत ज्यादा पीड़ा से गुजरना पड़ता है। लेकिन डिलीवरी के बाद पर्याप्त आराम और व्यायाम के द्वारा 6 सप्ताह में ही आप शारीरिक रूप से सामान्य हो सकती हैं।
पहले बच्चे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद दूसरे बच्चे के नॉर्मल डिलीवरी के लिए आपको निम्न बातों का ध्यान रखना पड़ेगा: