Category: शिशु रोग
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बच्चों की आंखों में काजल लगाने से उनकी खूबसूरती बहुत बढ़ जाती है। लेकिन शिशु की आंखों में काजल लगाने के बहुत से नुकसान भी है। इस लेख में आप शिशु की आँखों में काजल लगाने के सभी नुकसानों के बारे में भी जानेंगी।

भारत में छोटे बच्चों की आंखों में काजल या सुरमा लगाने का प्रचलन है। जब बच्चों की छोटी-छोटी आंखों में काजल लगता है तो वे बहुत प्यारे से लगते हैं।
प्राय सभी घरों में छोटे बच्चों की आंखों में काजल लगाया जाता है। इसके कई कारण है जैसे कि:
जिन घरों में बच्चों की आंखों में काजल या सुरमा लगाया जाता है, उनके पास इसे लगाने के बहुत से कारण मिलेंगे। लेकिन बच्चों की आंखों में काजल लगाना क्या वाकई सुरक्षित है?

यह एक ऐसा सवाल है जो कई बार माताओं के मन में आता है। अगर आप भी इस बात को लेकर परेशान हैं कि क्या वाकई काजल आपके शिशु आंखों के लिए सुरक्षित है और क्या वाकई यह आपकी बच्चों की आंखों की रोशनी बढ़ाता है तथा उन्हें दूसरों की बुरी नजर से बचाता है, तो हम आप को इस लेख में इसके बारे में विस्तार से बताएंगे।
शिशु की आंख उसकी शरीर का सबसे संवेदनशील अंग होता है। साथ ही बहुत नाजुक भी होता है। बच्चे बड़ों की तरह अपनी आंखों का ख्याल नहीं रख सकती है।
जब बड़ों को आंखों में तकलीफ महसूस होती है तो वह उनका ख्याल रख सकते हैं और दूसरों को अपनी तकलीफ बोलकर बता सकते हैं। लेकिन बच्चे बोलना नहीं जानती है।
आंखों के लिए काजल बहुत सुरक्षित नहीं माना जाता है। लेकिन भारत में इसका बहुत व्यापक रूप से प्रयोग होता है। जरूरी नहीं कि हर बार आंखों में काजल लगाने पर उन्हें तकलीफ हो। लेकिन फिर भी कई बार आंखों में काजल लगाने से तकलीफ होती है।
मगर बच्चे बोल कर अपनी तकलीफ को जाहिर नहीं कर सकते हैं और काजल से उनकी आंख में हो रही तकलीफ को वह केवल रोकर बयां कर सकते हैं।
जब बच्चे रोते हैं तो हम अनेक तरह से उन्हें शांत करने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्योंकि काजल का इस्तेमाल आमतौर पर सभी करते हैं इसीलिए इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है कि बच्चे की रोने की वजह उसके आंखों का काजल भी हो सकता है।
वैसे तो काजल आंखों की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है। लेकिन कभी-कभार या आंखों को नुकसान भी पहुंचाता है। और अगर काजल की वजह से बच्चे की आंखों को नुकसान पहुंच रहा है तो अफ़सोस, क्योंकि बच्चे बोल कर बता नहीं सकते।

बच्चों की आंखों में काजल लगाने के नुकसान कई प्रकार की देखने को मिल सकते हैं। कुछ आम नुकसान किस तरह है:
केवल घर का बना काजल की बच्चों की आंखों को नुकसान नहीं पहुंचाता है वरन बाजार से खरीदा हुआ ब्रांडेड का जल्दी बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसकी मुख्य वजह है काजल में मौजूद लेड (सीसा)। बाजार में उपलब्ध काजल में प्रचुर मात्रा में लेड (सीसा) होता है। लेड (सीसा) ना केवल शरीर के लिए हानिकारक है बल्कि या आंखों के लिए भी हानिकारक है।
विश्व भर में हुए अनेक शोध में शरीर पर लेड (सीसा) के हानिकारक प्रभावों को प्रमाणित किया जा चुका है। आप अंदाजा लगा सकते हैं की आंख जो कि शरीर का सबसे संवेदनशील अंग है, उस पर लेड (सीसा) का क्या बुरा असर पड़ेगा। क्या बच्चों की आंखों के मामले में यह जोखिम उठाना सही है?
काजल में मौजूद लेड (सीसा) शरीर के लिए बहुत ही खतरनाक तत्व है। लंबे समय तक शिशु की आंखों में काजल के प्रयोग से उसके शरीर में लेड (सीसा) इकट्ठा होने लगता है।
लेड (सीसा) इतना खतरनाक होता है या शिशु के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। इस वजह से आप पाएंगे कि जिन बच्चों की आंखों में काजल का इस्तेमाल होता है उन बच्चों का व्यवहार दूसरे बच्चों की तुलना में थोड़ा आसमान में होता है।
तथा इन बच्चों के मांसपेशियों का विकास भी उसे अच्छी तरह नहीं होता है जितना कि दूसरे बच्चों का होता है। लेकिन सबसे ज्यादा डरावनी बात यह है कि काजल में लेड (सीसा) शिशु के किडनी पर भी प्रभाव डालता है। बच्चे पर इनका लंबे समय तक प्रभाव इनके किडनी को खराब कर सकता है।
जब बच्चे रोते हैं तो बच्चों के आंसुओं के साथ काजल उनके मुंह में भी चला जाता है या फिर नहाते वक्त नाक के रास्ते भी काजल शिशु के शरीर में चला जाता है।
चाहे काजल जिस वजह से भी शिशु के शरीर में पहुंचे, यहां कई प्रकार के शिशु के शरीर को और उसके मस्तिष्क को क्षति पहुंचाता है।
शरीर में लेड (सीसा) की मौजूदगी से बच्चे को बोलने में परेशानी होती है, यह बच्चे बहुत देर से बोलना शुरू करते हैं तथा यह शिशु के सीखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है और यहां तक की शिशु के हड्डियों के विकास को भी बाधित करता है।
काजल में मुख्य रूप से एमॉर्फस, कार्बन, जिंकेट, मैग्नेटाइट और माइनिमम होता है। जब शिशु की आंखों में लंबे समय तक काजल का प्रयोग होता है तो उसके शरीर में लेड (सीसा) इकट्ठा होने लगता है।
इसका शिशु के दिमाग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है तथा यह शिशु के बोनमैरो पर भी बुरा प्रभाव डालता है। काजल के इस्तेमाल से शिशु की आंखों में संक्रमण फैल सकता है, विशेषकर अगर शिशु की आंखों में काजल अगर गंदे हाथों से लगाया गया हो यह काजल को साफ सुथरे तरीके से तैयार नहीं किया गया हो तो।
काजल से संक्रमण की वजह से आंखों में पानी आने की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। आंखों के बीच में स्थित कॉर्निया धूल-मिट्टी और गंदगीयह प्रति बहुत संवेदनशील होती है।
यही वजह है कि हमारी आंखों के ऊपर पल्खें हैं जो आंखों को धूल और गंदगी से बचाती है। शिशु की आंखों में काजल लगने की वजह से उनकी आंखों में स्थित कॉर्निया खुजली उत्पन्न करता है जिस वजह से आप बच्चे को अपनी आंखों को बार-बार न करता हुआ पाएंगे।
ऐसा करने पर काजल के कारण शिशु के आंखों में स्थित कॉर्निया तक पहुंच सकता है जो उसकी आंखों की तकलीफ को और भी ज्यादा बढ़ा सकता है।
बच्चों की आंखों में काजल लगाने से उनकी खूबसूरती बहुत बढ़ जाती है। लेकिन शिशु की आंखों में काजल लगाने के बहुत से नुकसान भी है। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि शिशु का बौद्धिक और शारीरिक विकास / होता है।
तो अब आप ही बताइए कि शिशु की आंखों में काजल लगाना कितना उचित है?
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बच्चों को ठण्ड के दिनों में सर्दी और जुकाम लगना आम बात है। लेकिन बच्चों में 12 तरीके से आप खांसी का घरेलु उपचार कर सकती है (khansi ka gharelu upchar)। सर्दी और जुकाम में अक्सर शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह एक अच्छा संकेत हैं क्योँकि इसका मतलब यह है की बच्चे का शरीर सर्दी और जुखाम के संक्रमण से लड़ रहा है। कुछ घरेलु तरीकों से आप शिशु के शारीर की सहायता कर सकती हैं ताकि वो संक्रमण से लड़ सके।
दैनिक जीवन में बच्चे की देखभाल करते वक्त बहुत से सवाल होंगे जो आप के मन में आएंगे - और आप उनका सही समाधान जाना चाहेंगी। अगर आप डॉक्टर से मिलने से पहले उन सवालों की सूचि त्यार कर लें जिन्हे आप पूछना चाहती हैं तो आप डॉक्टर से अपनी मुलाकात का पूरा फायदा उठा सकती हैं।
शिशु को 1 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कॉलरा, जापानीज इन्सेफेलाइटिस, छोटी माता, वेरिसेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
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नवजात बच्चे चार से पांच महीने में ही बिना किसी सहारे के बैठने लायक हो जाते हैं। लेकिन अगर आप अपने बच्चे को थोड़ी सी एक्सरसाइज कराएँ तो वे कुछ दिनों पहले ही बैठने लायक हो जाते हैं और उनकी मस्पेशियाँ भी सुदृण बनती हैं। इस तरह अगर आप अपने शिशु की सहायता करें तो वो समय से पहले ही बिना सहारे के बैठना और चलना सिख लेगा।
अल्बिनो (albinism) से प्रभावित बच्चों की त्वचा का रंग हल्का या बदरंग होता है। ऐसे बच्चों को धुप से बचा के रखने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बच्चे को दृष्टि से भी सम्बंधित समस्या हो सकती है। जानिए की अगर आप के शिशु को अल्बिनो (albinism) है तो किन-किन चीजों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
अगर आप का बच्चा दूध पीते ही उलटी कर देता है तो उसे रोकने के कुछ आसन तरकीब हैं। बच्चे को पीट पे गोद लेकर उसके पीट पे थपकी देने से बच्चे के छोटे से पेट में फसा गैस बहार आ जाता है और फिर उलटी का डर नहीं रहता है।
अगर आप परेशान हैं की आप का बच्चा समय पे नहीं सोता है तो कुछ तरीके हैं जिन्हें आप अजमा सकते हैं। अगर आप कुछ दिनों तक इन्हें आजमाएंगे तो आप के बच्चे में सोने का एक routine स्थापित हो गा और आप का बच्चा फिर हर दिन 60 सेकंड के अन्दर सो पायेगा।
हर बच्चे को कम से कम शुरू के 6 महीने तक माँ का दूध पिलाना चाहिए| इसके बाद अगर आप चाहें तो धीरे-धीरे कर के अपना दूध पिलाना बंद कर सकती हैं| एक बार जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसे ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए| जब आप ऐसा करते हैं तो धीरे धीरे कर अपना दूध पिलाना बंद करें।
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गर्मी के दिनों में बच्चों को सूती कपडे पहनाएं जो पसीने को तुरंत सोख ले और शारीर को ठंडा रखे। हर दो घंटे पे बच्चे को पानी पिलाते रहें। धुप की किरणों से बच्चे को बचा के रखें, दोपहर में बच्चों को लेकर घर से बहार ना निकाले। बच्चों को तजा आहार खाने को दें क्यूंकि गर्मी में खाने जल्दी ख़राब या संक्रमित हो जाते हैं। गर्मियों में आप बच्चों को वाटर स्पोर्ट्स के लिए भी प्रोत्साहित कर सकती हैं। इससे बच्चों के शरीर का तापमान कम होगा तथा उनका मनोरंजन और व्यायाम दोनों एक साथ हो जाएगा।
6 माह से 1 साल तक के शिशु को आहार के रूप में दाल का पानी,चावल का पानी,चावल,सूजी के हलवा,चावल व मूंग की खिचड़ी,गूदेदार, पके फल, खीर, सेरलेक्स,पिसे हुए मेवे, उबले हुए चुकंदर,सप्ताह में 3 से 4 अच्छे से उबले हुए अंडे,हड्डीरहित मांस, भोजन के बाद एक-दो चम्मच पानी भी शिशु को पिलाएं।
हर प्रकार के मिनरल्स और विटामिन्स से भरपूर, बच्चों के लिए ड्राई फ्रूट्स बहुत पौष्टिक हैं| ये विविध प्रकार के नुट्रिशन बच्चों को प्रदान करते हैं| साथ ही साथ यह स्वादिष्ट इतने हैं की बच्चे आप से इसे इसे मांग मांग कर खयेंगे|
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया के लगभग आधे बच्चों को किसी न किसी प्रकार की एलर्जी होगा। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है, उन बच्चों में इस रोग की संभावना अधिक होती है क्यों कि ये बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें सबसे आम दमा, एक्जिमा, पित्ती (त्वचा पर चकत्ते) और भोजन से संबंधित हैं।