Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Vandana Srivastava | ☺11 min read
येलो फीवर मछर के एक विशेष प्रजाति द्वारा अपना संक्रमण फैलता है| भारत से जब आप विदेश जाते हैं तो कुछ ऐसे देश हैं जैसे की अफ्रीका और साउथ अमेरिका, जहाँ जाने से पहले आपको इसका वैक्सीन लगवाना जरुरी है क्योँकि ऐसे देशों में येलो फीवर का काफी प्रकोप है और वहां यत्र करते वक्त आपको संक्रमण लग सकता है|
येलो फीवर वैक्सीन आप के बच्चे की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है अतःआप अपने बच्चे के सही पोषण के लिए और उसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के लिए जागरूक हो।
येलो फीवर ( पीत ज्वर - पीला बुखार ) विषाणु द्वारा उत्पन्न एक तीव्र हेमोरेजिक ( क्षतिग्रस्त रक्तवाहिनियों में रक्त प्रवाह होने वाला ) रोग है, जो मनुष्यों में संक्रमित मच्छर के काटने से होता है। रोग के नाम में येलो शब्द पीलिया को इंगित करता है जो कुछ रोगियों को प्रभावित करता है। यह ऐसा रोग है जो पूरे शरीर को प्रभावित करता है।
यह खेद की बात है की हर साल येलो फीवर से संक्रमित करीब 50 प्रतिशत लोग इसके संक्रमण से मर जाते हैं। परन्तु इससे वक्सीनशन के द्वारा पूरी तरह बचा जा सकता है। येलो फीवर के संक्रमण से बुखार, सर दर्द और उलटी (मितली) जैसे लक्षण पैदा होते हैं। गंभीर स्थितियों में यह ह्रदय, लिवर और किडनी से सम्बंधित जानलेवा लक्षण पैदा कर सकते हैं।
अलग अलग अवस्थाओं में येलो फीवर अलग अलग लक्षण पैदा करता है। येलो फीवर के कुछ मुख्या लक्षण इस प्रकार हैं:
त्वचा के भीतर दिए जाने वाले 0.5 मिली के केवल एक इंजेक्शन से 10 दिनों में प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती है जो अगले 10 साल तक बनी रहती है। हर देश में टीकाकरण कार्ड की आवश्यकता नहीं होती। यह येलो फीवर की अधिकता वाले केवल कुछ देशों में ही अनिवार्य है। सेंटर्स फोर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC- center for disease control and prevention) द्वारा येलो फीवर वितरण में परिवर्तन और येलो फीवर की वैक्सीन की जरूरत का समय रहते पता किया जा सकता है।वैक्सीन सामग्री टीके में तत्व होते हैं, जिन्हें एंटीजन कहा जाता है, जिससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। टीके में अन्य तत्वो की बहुत छोटी मात्रा भी होती है - ये सभी आवश्यक भूमिकाएं निभाते हैं।
9 माह से कम आयु को बच्चों को येलो फीवर वैक्सीन नही देनी चाहिए क्योकि 6 माह तक की आयु के बच्चों में ब्रेन की सूजन सम्बन्धी कई मामलों में टीका करण को जुड़ा पाया गया है, इसलिए जब तक कि येलो फीवर की चपेट में आने का खतरा बहुत अधिक ना हो, इसे 12 माह से अधिक की आयु तक के लिए रोकना चाहिए।
येलो फीवर का टीका सभी के लिए नहीं होता हैं। यह टीका कुछ बच्चो में गंभीर विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
वैक्सीन प्राप्त करने के बाद, आपको टीकाकरण (पीला कार्ड) का एक इंटरनेशनल सर्टिफिकेट प्राप्त करना चाहिए जो कि टीका करण केंद्र द्वारा मान्य किया गया है। यह सर्टिफिकेट टीका करण के 10 दिनों के बाद वैध हो जाता है। कुछ देशों में प्रवेश करने के लिए आपको टीका करण के प्रमाण के रूप में इस कार्ड की जरूरत होगी।
भारत से जब आप विदेश जाते हैं तो कुछ ऐसे देश हैं जैसे की अफ्रीका और साउथ अमेरिका, जहाँ जाने से पहले आपको इसका वैक्सीन लगवाना जरुरी है क्योँकि ऐसे देशों में येलो फीवर का काफी प्रकोप है और वहां यत्र करते वक्त आपको संक्रमण लग सकता है।
अभिभावक के रूप में, आप अपने बच्चे को वैक्सीन देने से पहले वैक्सीन, साइड इफेक्ट और , वैक्सीन सामग्री, और वैक्सीन सुरक्षा के बारे में और जानना चाहते हैं।
जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ जाती है, उन्हें सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा के लिए कुछ टीकों की अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता होती है। बड़े बच्चों को भी अतिरिक्त बीमारियों से बचाव करने की आवश्यकता होती है जिन्हें वे मिल सकते हैं।
टीकाकरण के कुछ दिनों के लिए अपने बच्चे पर अतिरिक्त ध्यान दें। यदि आप कुछ ऐसी चीजें देखते हैं जो आपको चिंतित करते हैं, तो अपने बच्चे के डॉक्टर को फोन करें।