Category: बच्चों का पोषण
By: Vandana Srivastava | ☺13 min read
बच्चों को उनके उम्र और वजन के अनुसार हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे संतुलित आहार के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों को 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरुरत पड़ती है। किशोर अवस्था के बच्चों को हर दिन 1300 मिग्रा, तथा व्यस्क और बुजुर्गों को 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम आहारों के माध्यम से लेने की आवश्यकता पड़ती है।

बच्चों का विकास शुरुआती कुछ सालों में बहुत तीव्र गति से होता है। इस दौरान उनके शरीर को बहुत कैल्शियम की जरूरत पड़ती है। लेकिन मुश्किल तब खड़ी होती है जब बहुत से बच्चे दूध से नफरत करते हैं और दूध पीना नहीं चाहते हैं।
इसीलिए, इस लेख में हम आपको बताएंगे ऐसे आहारों के बारे में जो खाने में बच्चों को बहुत पसंद आएगा और साथ ही यह आहार बच्चों को उनकी जरूरत के अनुसार उनके शरीर में कैल्शियम की पूर्ति करेगा। कैल्शियम की दवा से बेहतर आहार हैं। आहार प्राकृतिक रूप से शिशु के शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा करता है।
बच्चों का शरीर युवा अवस्था तक पहुंचने से पहले आहार का मात्र 60% कैल्शियम ही अवशोषित कर पाता है। एक बार जब बच्चे युवा अवस्था में पहुंच जाते हैं तब उस दौरान उनका शरीर आहार से 75 से 80% तक कैल्शियम अवशोषित करता है।
बच्चों के शरीर को अनेक प्रकार के कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है लेकिन कैल्शियम की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है दांतों और हड्डियों के निर्माण में तथा उन को मजबूती प्रदान करने में। इसके अलावा कैल्शियम रक्तचाप को भी नियंत्रित रखने में अहम भूमिका निभाता है कथा शरीर में नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए भी जरूरी है।
बुजुर्ग लोगों में जोड़ों का दर्द और कमजोर हड्डियों की वजह उनके शरीर में कैल्शियम की कमी की वजह से होता है। बच्चों के साथ साथ व्यस्क तथा बुजुर्ग हर किसी को आहारों के माध्यम से कैल्शियम की पूर्ति करने की आवश्यकता है। अगर शरीर को कैल्शियम ना मिले आहारों के माध्यम से तो अनेक प्रकार की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

बच्चों को उनके आहार के माध्यम से हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम प्राप्त करने की आवश्यकता है। 1 साल से कम उम्र के बच्चों को हर दिन कम से कम 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरूरत पड़ती है।
बच्चे जब किशोरावस्था में पहुंचते हैं तब उनके शरीर को हर दिन 1300 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है।
व्यस्तता बुजुर्ग लोगों को प्रतिदिन 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे आसानी से संतुलित आहार के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।

दूध कैल्शियम का सबसे बेहतर स्रोत है। 1 साल से कम उम्र के शिशु को गाय के दूध के बदले मां का दूध ही देना चाहिए। अगर मां का दूध पर्याप्त ना हो तो शिशु को साथ में फार्मूला दूध दिया जा सकता है।
जब शिशु 1 साल से बड़ा हो जाता है तब उसे गाय का दूध भी दिया जा सकता है। बच्चों में 6 महीने की उम्र से ठोस आहार शुरू किया जा सकता है।
दूध के साथ-साथ संतुलित आहार के माध्यम से भी बच्चों के शरीर में कैल्शियम की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।
संतुलित आहार से शिशु को वह सारे पोषक तत्व मिलते हैं जो उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है जैसे प्रोटीन कैल्शियम विटामिन आयरन इत्यादि।
आप का बच्चा यदि दूध पीना पसंद नहीं करता हैं , तो यह आप की बहुत बड़ी समस्या हैं क्योंकि वह भोजन से वे सारे तत्व नहीं प्राप्त कर सकता हैं , जो उसे एक गिलास दूध पीकर मिलता हैं।

इसकी वजह से उसके अंदर कैल्शियम की कमी हो जाती हैं। कैल्शियम की कमी से हड्डियों से सम्बंधित कई बीमारियां हो जाती हैं , क्योंकि बच्चे के अंदर उसके दॉंतो का निकलना तथा हड्डियों के लचीलेपन को मजबूती प्रदान करना कैल्शियम का ही कार्य हैं। इसलिए किसी न किसी प्रकार से बच्चे को कैल्शियम की खुराक देना आवश्यक हैं।
बच्चों को कैल्शियम प्रदान करने के लिए दूध सबसे प्रमुख आहार है। लेकिन कुछ दुर्लभ घटनाओं में ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन्हें दूध से एलर्जी होती है।

इन बच्चों के मां-बाप के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि अपने बच्चे के शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरी किस तरह करें।
जिन बच्चों को दूध से एलर्जी है उन बच्चों को सोया मिल्क दिया जा सकता है। इसमें इतना कैल्शियम तो नहीं होता है जितना कि दूध में पाया जाता है मगर एक गिलास सोया मिल्क से शिशु को 300 मिग्रा कैल्शियम प्राप्त होता है।
कैल्शियम एक ऐसा खनिज है जो शिशु के शरीर को स्वस्थ रखता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है। यह हड्डियों तथा मांस पेशियों के विकास के लिए भी जरूरी है।

अगर कभी किसी कारण से शिशु के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाए तो उसे अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है उदाहरण के लिए दांतों और हड्डियों में 95% से ज्यादा कैल्शियम होता है।
अगर इसमें कमी हो जाए तो दांत और हड्डियां कमजोर पड़ जाएंगी और आसानी से टूट सकती है। महिलाओं के लिए भी कैल्शियम बहुत आवश्यक है।
30 साल की उम्र के बाद अगर महिलाओं के शरीर में कैल्शियम कम होने लगे तो उनकी हड्डियां खुलने लगती हैं इसलिए आवश्यक है कि शरीर में कैल्शियम की कमी को ना होने दिया जाए। संतुलित आहार के माध्यम से शरीर में होने वाले कैल्शियम की कमी को रोका जा सकता है।
कैल्शियम की कमी को रोकने के लिए सबसे बेहतर उपाय यह है कि आप अपने डाइट में ऐसे आहारों को सम्मिलित करें जिनमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होता है।


कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाने और रक्त कोशिकाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। कई माताएं अपने बच्चों के शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए उन्हें दूध चीज बटर पनीर और अन्य प्रकार के डेरी प्रोडक्ट खिलाती हैं।
यह शिशु के शरीर में कैल्शियम की आवश्यकता को पूर्ति करने के लिए एक बेहतर तरीका है। लेकिन कुछ बच्चे दूध तथा दूध से बनने वाले प्रोडक्ट को बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं ऐसे में उन्हें आप निम्न आहार दे सकती हैं जिन्हें वह बड़े चाव से खाएंगे और अपनी कैल्शियम की आवश्यकता को भी पूरी कर सकते हैं।


आप अपने बच्चे को इन में से कोई भी चीज़ रुचिकर रूप से बना कर खिला सकती हैं। और उसकी पसंद का ध्यान देते हुए उसके शरीर को स्वस्थ बना सकती हैं।
दूध न पसंद होते हुए भी उसको समझा कर दूध में उसके पसंद का कोई भी पाउडर , केला या सेब आदि मिला कर उससे पिलाने की कोशिश कर सकती हैं।
क्योंकि आपके बच्चे के लिए दूध अत्यंत आवश्यक है , जो उसके शरीर का समुचित विकास करेगा। परन्तु आप उसके साथ कठोरता से न पेश आएं। ज़रुरत समझे तो किसी चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
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8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
बच्चों में अस्थमा के कई वजह हो सकते हैं - जैसे की प्रदुषण, अनुवांशिकी। लेकिन यह बच्चों में ज्यादा इसलिए देखने को मिलती है क्यूंकि उनका श्वसन तंत्र विकासशील स्थिति में होता है इसीलिए उनमें एलर्जी द्वारा उत्पन्न अस्थमा, श्वसन में समस्या, श्वसनहीनता, श्वसनहीन, फेफड़े, साँस सम्बन्धी, खाँसी, अस्थमा, साँस लेने में कठिनाई देखने को मिलती है। लेकिन कुछ घरेलु उपाय, बचाव और इलाज के दुवारा आप अपने शिशु को दमे की तकलीफों से बचा सकती हैं।
गाए के दूध से मिले देशी घी का इस्तेमाल भारत में सदियौं से होता आ रहा है। स्वस्थ वर्धक गुणों के साथ-साथ इसमें औषधीय गुण भी हैं। यह बच्चों के लिए विशेष लाभकारी है। अगर आप के बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है, तो देशी घी शिशु का वजन बढ़ाने की अचूक दावा भी है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे शिशु को देशी घी खिलने के 7 फाएदों के बारे में।
बाजार में उपलब्ध अधिकांश बेबी प्रोडक्ट्स जैसे की बेबी क्रीम, बेबी लोशन, बेबी आयल में आप ने पराबेन (paraben) के इस्तेमाल को देखा होगा। पराबेन (paraben) एक xenoestrogens है। यानी की यह हमारे शारीर के हॉर्मोन production के साथ सीधा-सीधा छेड़-छाड़ करता है। क्या कभी आप ने सोचा की यह आप के शिशु शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सुरक्षित है भी या नहीं?
भारत सरकार के टीकाकरण चार्ट 2018 के अनुसार अपने शिशु को आवश्यक टीके लगवाने से आप का शिशु कई घम्भीर बिमारियौं से बचा रहेगा। टिके शिशु को चिन्हित बीमारियोँ के प्रति सुरक्षा प्रदान करते हैं। भरता में इस टीकाकरण चार्ट 2018 का उद्देश्य है की इसमें अंकित बीमारियोँ का जड़ से खत्म किया जा सके। कई देशों में ऐसा हो भी चूका है और कुछ वर्षों में भारत भी अपने इस लक्ष्य को हासिल कर पायेगा।
शिशु के कान में मेल का जमना आम बात है। मगर कान साफ़ करते वक्त अगर कुछ महत्वपूर्ण सावधानी नहीं बरती गयी तो इससे शिशु के कान में इन्फेक्शन हो सकता है या उसके कान के अन्दर की त्वचा पे खरोंच भी लग सकता है। जाने शिशु के कान को साफ़ करने का सही तरीका।
शिशु को बहुत छोटी उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात शिशु से ले कर एक साल तक की उम्र के बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता ही वो अपने शरीर का तापमान वयस्कों की तरह नियंत्रित कर सकें। इसलिए यह जाना बेहद जरुरी है की बच्चे को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है।
मखाने के फ़ायदे अनेक हैं। मखाना दुसरी ड्राई फ्रूट्स की तुलना में ज्यादा पौष्टिक है और सेहत के लिए ज्यादा फायेदेमंद भी। छोटे बच्चों को मखाना खिलने के कई फायेदे हैं।
नवजात बच्चे के खोपड़ी की हड्डियां नरम और लचीली होती हैं ताकि जन्म के समय वे संकरे जनन मार्ग से सिकुड़ कर आसानी से बहार आ सके। अंग्रेज़ी में इसी प्रक्रिया को मोल्डिंग (moulding) कहते हैं और नवजात बच्चे के अजीब से आकार के सर को newborn head molding कहते हैं।
जब आपका बच्चा बड़े क्लास में पहुँचता है तो उसके लिए ट्यूशन या कोचिंग करना आवश्यक हो जाता है ,ऐसे समय अपने बच्चे को ही इस बात से अवगत करा दे की वह अपना ध्यान खुद रखें। अपने बच्चे को ट्यूशन भेजने से पहले उसे मानसिक रूप से तैयार केर दे की उसे क्या पढाई करना है।
मसूर दाल की खिचड़ी एक अच्छा शिशु आहार है (baby food)| बच्चे के अच्छे विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरतों की पूर्ति होती है। मसूर दाल की खिचड़ी को बनाने के लिए पहले से कोई विशेष तयारी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जब भी आप के बच्चे को भूख लगे आप झट से 10 मिनट में इसे त्यार कर सकते हैं।
6 month से 2 साल तक के बच्चे के लिए गाजर के हलुवे की रेसिपी (recipe) थोड़ी अलग है| गाजर बच्चे की सेहत के लिए बहुत अच्छा है| गाजर के हलुवे से बच्चे को प्रचुर मात्रा में मिलेगा beta carotene and Vitamin A.
युवा वर्ग की असीमित बिखरी शक्ति को संगठित कर उसे उचित मार्गदर्शन की जितनी आवश्यकता आज हैं , उतनी कभी नहीं थी। आज युवा वर्ग समाज की महत्वकांशा के तले इतना दब गया हैं , की दिग - भ्रमित हो गया हैं।
नवजात बच्चे से सम्बंधित बहुत सी जानकारी ऐसी है जो कुछ पेरेंट्स नहीं जानते। उन्ही जानकारियोँ में से एक है की बच्चों को 6 month से पहले पानी नहीं पिलाना चाहिए। इस लेख में आप पढेंगे की बच्चों को किस उम्र से पानी पिलाना तीख रहता है। क्या मैं अपनी ५ महीने की बच्ची को वाटर पानी दे सकती हु?
हर बच्चे को कम से कम शुरू के 6 महीने तक माँ का दूध पिलाना चाहिए| इसके बाद अगर आप चाहें तो धीरे-धीरे कर के अपना दूध पिलाना बंद कर सकती हैं| एक बार जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसे ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए| जब आप ऐसा करते हैं तो धीरे धीरे कर अपना दूध पिलाना बंद करें।
बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए बचपन से ही उन्हें अच्छे और बुरे में अंतर करना सिखाएं। यह भी जानिए की बच्चों को बुरी संगत से कैसे बचाएं। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दीजिये।
गर्मियों में नाजुक सी जान का ख्याल रखना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मगर थोड़ी से समझ बुझ से काम लें तो आप अपने नवजात शिशु को गर्मियों के मौसम में स्वस्थ और खुशमिजाज रख पाएंगी।
गर्मी के दिनों में बच्चों को सूती कपडे पहनाएं जो पसीने को तुरंत सोख ले और शारीर को ठंडा रखे। हर दो घंटे पे बच्चे को पानी पिलाते रहें। धुप की किरणों से बच्चे को बचा के रखें, दोपहर में बच्चों को लेकर घर से बहार ना निकाले। बच्चों को तजा आहार खाने को दें क्यूंकि गर्मी में खाने जल्दी ख़राब या संक्रमित हो जाते हैं। गर्मियों में आप बच्चों को वाटर स्पोर्ट्स के लिए भी प्रोत्साहित कर सकती हैं। इससे बच्चों के शरीर का तापमान कम होगा तथा उनका मनोरंजन और व्यायाम दोनों एक साथ हो जाएगा।
बच्चों में पेट दर्द का होना एक आम बात है। और बहुत समय यह कोई चिंता का कारण नहीं होती। परन्तु कभी कभार यह गंभीर बीमारियोँ की और भी इशारा करती। पेट का दर्द एक से दो दिनों के अंदर स्वतः ख़तम हो जाना चाहिए, नहीं तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।