Category: बच्चों की परवरिश
By: Vandana Srivastava | ☺4 min read
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।

होली के त्यौहार का हम भारतियौं को साल भर इन्तेजार रहता है। ये ऐसा खुशियौं भरा समय होता है जब लोग अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों के साथ खुशियों के रंगों में रंग जाते हैं।
गौर से देखा जाये तो ये त्यौहार समाज में मौजूद ऊंच-नीच, गरीब-अमीर जैसी दीवार को (कुछ समय के लिए सही) तोड़ देती है और साथ ही बच्चों को एक महत्वपूर्ण शिक्षा भी देती है की इंसान की पहचान उसके काम से होती है ना की उसके जात पात या धर्म-मजहब के आधार पे।

इस उत्साह और उमग भरे त्यौहार की तयारी में लोग महीने भर से जुट जाते हैं। सामूहिक रूप से सभी लोग मिल कर के लकड़ी, उपले आदि इकट्ठा करते हैं ताकि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन, शाम के वक्त होलिका दहन कर सके।
बच्चे बड़ों के व्यहारों को देख कर उनसे बहुत कुछ सीखते हैं। इस प्रकार से सामूहिक रूप से मिल कर के त्यौहार की तयारी करने से बच्चों में team work की भावना का सृजन होता है।
होली के दिन शाम को होलिका दहन के के वक्त लोग नृत्य और लोकगीत का आनंद लेते हैं। ये एक ऐसा समय होता है जब बच्चों को अपने संस्कृति से जुड़ने का मौका मिलता है। जाहिर है इन सारी गतिविधियौं को देख के बच्चों के मन में बहुत सारे सवाल उठते हैं।

यही मौका है जब माँ-बाप अपने बच्चों की जिज्ञासा को शांत करते वक्त उन्हें भारत के संस्कृति के बारे में बता सकते हैं ताकि उन्हें अपनी संस्कृति और अपनी पहचान पे गर्व हो।
भारत एक धर्म- निरपेक्ष देश है, जहाँ सभी धर्मों के लोगों को अपने- अपने धार्मिक त्योहारों को स्वच्छंदता से मनाने का अधिकार है, वहीँ समाज के विभिन्न वर्गों को अपने- अपने रीति- रिवाज़ों का पालन करने की स्वतंत्रता भी है।
हम सभी लोग स्वयं को प्रसन्न रखने के लिए अवसरों की तलाश में रहते हैं। समाज में रहने के कारण अपने लोगों के साथ मिल बैठकर समय बिताने के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन करते हैं।
इस प्रकार परस्पर संबंधों में घनिष्ठता बढ़ती है, जिससे मस्तिष्क से तनाव, क्रोध, ईर्ष्या, आदि बुरी भावनाएं दूर होती है और भविष्य के लिए एक सुन्दर वातावरण तैयार होता है।

भारतीय संस्कृति और परम्पराओं पर निगाह डालें तो हम पाते हैं कि परिवार में चाहे विवाह समारोह हो, बच्चे का जन्म, फसल की कटाई, व्यापार में लाभ या युद्ध में विजय हो इन सभी अवसरों पर हम प्रसन्नता व्यक्त करते हैं और रही त्योहार की बात तो वह मनुष्य के लिए सुख और आनंद का श्रोत रहा है।
अपने परिचय में आने वाले सभी लोगों को इसमें सम्मिलित करना चाहता है। सभी धर्मों में ऐसे त्योहारों की एक श्रृंखला है। अधिकतर त्योहार ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हैं। जिसमें से होली का तो अपना खास ही महत्व है। होली का नाम आते ही बच्चे और बड़ों में खुशियों का संचार होता है।
होली का त्योहार भारतीय संस्कृति का संवाहक हैं। होली सद्भावना ,भाईचारा और आपसी प्रेम का प्रतीक हैं। होलिका दहन के माध्यम से व्यक्ति अपनी सारी बुराइयों को जड़ से जला देता हैं। अपनी सारी कटुता को भुला देता हैं।

होली का त्योहार अलग -अलग प्रांतो में अलग -अलग तरीके से मनाया जाता हैं। कही-कही फूलों के माध्यम से भी होली होती हैं।
उत्तर भारत में तो रंग , गुलाब ,अबीर ,कीचड़ आदि से होली होती हैं शाम के समय में नए कपड़े पहन कर लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं और एक दूसरे के गले मिलते हैं।इसका मुख्या पकवान गुजिया हैं , जो मैदे में खोवा भरकर बनाते हैं कहीं- कहीं ठंडाई और भांग पीने की भी प्रथा हैं।
होली भाईचारे तथा रंगो का त्योहार हैं।यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। होली के इस त्योहार के पीछे एक पौराणिक कथा हैं - राजा हिरण्यकश्यप, भगवान की पूजा का विरोधी था।

उसके राज्य में जो ईश्वर की उपासना करता था , वह उसे मृत्यु - दंड देता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भी भगवान का उपासक था। इस बात से क्रोधित होकर हिरणकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयास किये , परन्तु असफल रहा।हिरणकश्यप की एक बहन थी , जिसका नाम होलिका था।
उसे यह वरदान प्राप्त था की वह आग में नहीं जल सकती।हिरणकश्यप के कहने पर वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई। तभी से होली से एक दिन पहले लोग होलिका जलाते हैं।

होली के समय किसानों की फैसले तैयार हो चुकी होती हैं और वे नयी फसल की ख़ुशी में गेहू की बालिया होलिका दहन के समय आग में भूनते हैं और एक - दूसरे से गले मिलकर उन्हें वह अनाज देते हैं।इस दिन खूब नाच - गाना होता हैं और खुशियां मनाई जाती हैं।
होलिका दहन के अगले दिन 'फ़ाग ' खेला जाता हैं ,जिसे 'धुलेंडी 'भी कहते हैं।इस दिन सभी लोग एक - दूसरे को रंग -गुलाल आदि लगाते हैं और गले मिलते हैं।
छोटे - बड़े सभी इस त्योहार को मिल - जुलकर मनाते हैं। कहते हैं कि इस दिन शत्रु को भी रंग व गले लगाकर मित्र बना लिया जाता हैं।
दुश्मनी भूलकर सभी हर्ष और उमंग से होली खेलते हैं तथा मिठाई खाकर खुशियां मनाते हैं।मथुरा , वृन्दावन में होली विशेष रूप से मनाई जाती हैं।बरसाने की लट्ठमार होली तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं ,जिसे देखने लोग दूर – दूर से आते हैं।इस त्योहार में कृष्ण की लीला - भूमि, रंग व् मस्ती से झूम उठती हैं। तभी किसी कवि ने लिखा -
"होली खेलते हैं गिरिधारी , बाजत ढोल और मृदंग "
कुछ लोग रंगो के स्थान पार कीचड़ , पेंट और रसायन आदि का प्रयोग करते हैं ,जिससे चेहरे और शरीर के अंगो पर जलन होने लगती हैं तथा वह दाग -धब्बों से भर जाता हैं।
ऐसा करने से इस रंगीन और मस्ती भरे त्योहार का रंग फीका हो जाता हैं।कुछ लोग इस त्योहार पर शराब और भांग जैसी नशीली चीजों का सेवन भी करते हैं ,जो गलत हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।
आप को होली के त्योहार में अपने बच्चों का खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि रंग में विभिन्न प्रकार के केमिकल हैं जो त्वचा और आखों को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं।
उन्हें आर्गेनिक रंग या सिर्फ गुलाल से सूखी होली खेलनी चाहिए। सबसे अच्छा उपाय है, फूलों से होली खेलना। इस ऋतू में प्रक्रति भी फूलो से सजी होती हैं , गेंदे का फूल पर्याप्त मात्रा में मिल जाता हैं उनकी पंखुरियों को अलग कर के उससे भी होली खेला जाता हैं। इससे पानी की भी बचत होगी और स्वास्थ की दृष्टि से भी अच्छा होगा।
आज के सन्दर्भ में इन त्योहारों का महत्त्व और भी बढ़ गया हैं। आज जहाँ चारों ओर आतंकवाद का तांडव नृत्य, हर समय मौत का भय बन लोगो को भयभीत कर रहा हैं ,वही पग -पग पर भ्रष्टाचार , धोखा , धर्म -जाति के नाम पर बिखराव - टकराव हर कही देखने को मिलता हैं।
विज्ञान के नित नूतन आविष्कारों ने मानव को आत्म- केंद्रित बना दिया हैं ,आधुनिकता की अंधी दौड़ ने उसे स्वार्थी बना दिया है। ऐसे समय में, इन त्योहारों का महत्व पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है।
लोगों के त्योहार और रीति- रिवाज़ का स्वरुप अलग- अलग है, पर हमने उन्हें ऐसा आत्मसात किया कि दोनों का अंतर ही लुप्त हो गया। हम इन्हें साधनों के अनुसार घटा- बढ़ा कर मनाते हैं।
व्यस्ततम मानव जीवन में शांति, भाईचारा, मेल-मिलाप, हंसी- खुशी से एक- दूसरे के साथ मिल- बाँट कर जीवन जीने का भाव तभी उत्पन्न होगा जब मनुष्य इन त्योहारों को मिल-जुलकर मनाएगा।
धर्म, जाति- भेद, धनी- निर्धन, सेवक- स्वामी का भाव मिटाकर जब तक उदार ह्रदय से इन त्योहारों को नहीं मनाएंगे तब तक हमारे बीच भाईचारा, सौहाद्रपूर्ण वातावरण पनप नहीं पायेगा।
अतः, हम अपने बच्चों को आपसी मित्रता का पैगाम देते हुए नुकसानदेह रंग के स्थान पर आर्गेनिक रंग और फूलों से होली खेलने के लिए प्रेरित करते हैं और भाईचारे की एक मिसाल कायम करते हैं।
तो आइये इस वर्ष, होली के त्योहार को एक अनूठे अंदाज़ में मनाते हैं। होली की शुभकामनाओं सहित .....
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मां के दूध पर निर्भर रहना और फाइबर का कम सेवन करने के कारण अक्सर बच्चे को कब्ज की समस्या बनी रहती है। ठोस आहार देने के बावजूद बच्चे को सामान्य होने में समय लगता है। इन दिनों उसे मल त्यागने में काफी दिक्कत हो सकती है।
UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर (बीपी) ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए आप नमक का कम से कम सेवन करें। इसके साथ आप लैटरल पोजीशन (lateral position) मैं आराम करने की कोशिश करें। नियमित रूप से अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाते रहें और ब्लड प्रेशर (बीपी) से संबंधित सभी दवाइयां ( बिना भूले) सही समय पर ले।
बच्चो में दांत सम्बंधी समस्या को लेकर अधिकांश माँ बाप परेशान रहते हैं। थोड़ी से सावधानी बारात कर आप अपने बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत को घर पे ही ठीक कर सकती हैं। चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए दांतों का बहुत ही महत्व होता है। इसीलिए अगर बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो माँ बाप का परेशान होना स्वाभाविक है। बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत उनके चेहरे की खूबसूरती को ख़राब कर सकते हैं। इस लेख में हम आप को बताएँगे कुछ तरीके जिन्हें अगर आप करें तो आप के बच्चों के दांत नहीं आयेंगे टेढ़े-मेढ़े। इस लेख में हम आप को बताएँगे Safe Teething Remedies For Babies In Hindi.
बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में पोषण का बहुत बड़ा योगदान है। बच्चों को हर दिन सही मात्र में पोषण ना मिले तो उन्हें कुपोषण तक हो सकता है। अक्सर माँ-बाप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की क्या उनके बच्चे को सही मात्र में सभी जरुरी पोषक तत्त्व मिल पा रहे हैं या नहीं। इस लेख में आप जानेंगी 10 लक्षणों के बारे मे जो आप को बताएँगे बच्चों में होने वाले पोषक तत्वों की कमी के बारे में।
सुपरफूड हम उन आहारों को बोलते हैं जिनके अंदर प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। सुपर फ़ूड शिशु के अच्छी शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत पूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बच्चों को वो सभी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो शिशु के शारीर को अच्छी विकास के लिए जरुरी होता है।
अन्य बच्चों की तुलना में कुपोषण से ग्रसित बच्चे वजन और ऊंचाई दोनों ही स्तर पर अपनी आयु के हिसाब से कम होते हैं। स्वभाव में यह बच्चे सुस्त और चढ़े होते हैं। इनमें दिमाग का विकास ठीक से नहीं होता है, ध्यान केंद्रित करने में इन्हें समस्या आती है। यह बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। कुछ बच्चों में दांत निकलने में भी काफी समय लगता है। बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि शिशु के भोजन में हर प्रकार के आहार को सम्मिलित किया जाएं।
बच्चे की ADHD या ADD की समस्या को दुश्मन बनाइये - बच्चे को नहीं। कुछ आसन नियमों के दुवारा आप अपने बच्चे के मुश्किल स्वाभाव को नियंत्रित कर सकती हैं। ADHD या ADD बच्चों की परवरिश के लिए माँ-बाप को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
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आसन घरेलु तरीके से पता कीजिये की गर्भ में लड़का है या लड़की (garbh me ladka ya ladki)। इस लेख में आप पढेंगी गर्भ में लड़का होने के लक्षण इन हिंदी (garbh me ladka hone ke lakshan/nishani in hindi)। सम्पूर्ण जनकरी आप को मिलेगी Pregnancy tips in hindi for baby boy से सम्बंधित। लड़का होने की दवा (ladka hone ki dawa) की भी जानकारी लेख के आंत में दी जाएगी।
जिस शिशु का BMI 85 से 94 परसेंटाइल (percentile) के बीच होता है, उसका वजन अधिक माना जाता है। या तो शिशु में body fat ज्यादा है या lean body mass ज्यादा है। स्वस्थ के दृष्टि से शिशु का BMI अगर 5 से 85 परसेंटाइल (percentile) के बीच हो तो ठीक माना जाता है। शिशु का BMI अगर 5 परसेंटाइल (percentile) या कम हो तो इसका मतलब शिशु का वजन कम है।
A perfect sling or carrier is designed with a purpose to keep your baby safe and close to you, your your little one can enjoy the love, warmth and closeness. Its actually even better if you also have a toddler in a pram.
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सात से नौ महीने (7 to 9 months) की उम्र के बच्चों को आहार में क्या देना चाहिए की उनका विकास भलीभांति हो सके? इस उम्र में शिशु का विकास बहुत तीव्र गति से होता है और उसके विकास में पोषक तत्त्व बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संगती का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| बच्चे दोस्ती करना सीखते हैं, दोस्तों के साथ व्यहार करना सीखते हैं, क्या बात करना चाहिए और क्या नहीं ये सीखते हैं, आत्मसम्मान, अस्वीकार की स्थिति, स्कूल में किस तरह adjust करना और अपने भावनाओं पे कैसे काबू पाना है ये सीखते हैं| Peer relationships, peer interaction, children's development, Peer Influence the Behavior, Children's Socialization, Negative Effects, Social Skill Development, Cognitive Development, Child Behavior
रागी का हलुवा, 6 से 12 महीने के बच्चों के लिए बहुत ही पौष्टिक baby food है। 6 से 12 महीने के दौरान बच्चों मे बहुत तीव्र गति से हाड़ियाँ और मासपेशियां विकसित होती हैं और इसलिए शरीर को इस अवस्था मे calcium और protein की अवश्यकता पड़ती है। रागी मे कैल्शियम और प्रोटीन दोनों ही बहुत प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता है।
गर्मियों की आम बीमारियां जैसे की बुखार, खांसी, घमोरी और जुखाम अक्सर बच्चो को पीड़ित कर देती हैं। साधारण लगने वाली ये मौसमी बीमारियां जान लेवा भी हो सकती हैं। जैसे की डिहाइड्रेशन, अगर समय रहते बच्चे का उपचार नहीं किया गया तो देखते देखते बच्चे की जान तक जा सकती है।
बच्चों में जरूरत से ज्यादा नमक और चीनी का सावन उन्हें मोटापा जैसी बीमारियोँ के तरफ धकेल रहा है| यही वजह है की आज हर 9 मैं से एक बच्चे का रक्तचाप उसकी उम्र के हिसाब से अधिक है| इसकी वजह बच्चों के आहार में नमक की बढ़ी हुई मात्रा|
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बच्चों को बुद्धिमान बनाने के लिए जरुरी है की उनके साथ खूब इंटरेक्शन (बातें करें, कहानियां सुनाये) किया जाये और ऐसे खेलों को खेला जाएँ जो उनके बुद्धि का विकास करे। साथ ही यह भी जरुरी है की बच्चों पर्याप्त मात्रा में सोएं ताकि उनके मस्तिष्क को पूरा आराम मिल सके। इस लेख में आप पढेंगी हर उस पहलु के बारे में जो शिशु के दिमागी विकास के लिए बहुत जरुरी है।