Category: प्रेगनेंसी
By: Editorial Team | ☺10 min read
मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। यह अधिकांश बदलाव शरीर में हो रहे हार्मोनअल (hormonal) परिवर्तन की वजह से होते हैं। और अगले कुछ दिनों में जब फिर से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य हो जाता है तो यह समस्याएं भी खत्म होनी शुरू हो जाती है। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो एक मां को अक्सर बहुत परेशान कर देती है। इन्हीं में से एक बदलाव है बार बार यूरिन होना। अगर आपने कुछ दिनों पहले अपने शिशु को जन्म दिया है तो हो सकता है आप भी बार-बार पेशाब आने की समस्या से पीड़ित हो।
नॉर्मल डिलीवरी के बाद अधिकांश महिलाओं को बार बार यूरीन पास होने की समस्या होती है जबकि जो महिलाएं सी सेक्शन द्वारा डिलीवरी करती हैं उनमें यह समस्या नहीं देखी जाती है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नॉर्मल डिलीवरी के बाद शरीर की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और फैल जाती है। मांसपेशियों के ढीले पड़ जाने की वजह से बार-बार यूरिन आने की समस्या उत्पन्न होती है। इस समस्या को अंग्रेजी में Incontinence After Childbirth कहते हैं।
अधिकांश मामलों में बिना किसी इलाज के यह समस्या खुद-ब-खुद पहले साल के अंत तक खत्म हो जाती है। लेकिन कुछ ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं जहां कुछ माताएं इस समस्या से 5 साल तक पीड़ित रहती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इस समस्या से किस प्रकार आप प्रभावी तरीके से निपट सकती हैं।
नॉर्मल डिलीवरी की विधि से शिशु के जन्म के बाद बार बार यूरिन की समस्या को दो कारकों में बांटा गया है। एक जो तनाव की वजह से होता है और दूसरा जो गर्भाशय पर दबाव की वजह से होता है।
इस समस्या में देखा गया है कि महिलाओं को वैसे तो यूरिन की समस्या नहीं रहती है लेकिन जब भी बहुत जोर से हंसती हैं, छींकती हैं, कूदने पर या भारी वजन उठाने पर भी उन्हें इसकी समस्या का सामना करना पड़ जाता है।
यह समस्या गर्भावस्था के दौरान ही शुरू हो जाती है विशेषकर जब आप अपने गर्भावस्था के तिमाही में होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस दौरान शिशु के आकार में पड़ने की वजह से uterus अपना दबाव bladder पे बनाता है।
हमारे शरीर में bladder एक बैलून की तरह होता है जिसका अंतिम हिस्सा नॉब की तरह होता है। जब bladder मैं जब यूरिन अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो जाता है तो ब्लैडर इसे मूत्र त्याग के दौरान रिलैक्स करके निकाल देता है।
लेकिन साधारण विधि से शिशु के जन्म के दौरान ब्लैडर के चारों ओर की मांसपेशियां जो ब्लैडर को सहारा देती हैं - बहुत ज्यादा तन जाती हैं। शिशु के जन्म के दौरान पड़ने वाले अत्यधिक तनाव की वजह से डिलीवरी के बाद मांसपेशियां पूरी तरह से अपने स्थान पर फिर से लौट नहीं पाती हैं।
इसके अलावा शरीर में हो रहे हारमोंस के बदलाव की वजह से यहां की मांसपेशियां बहुत ज्यादा लचीली हो जाती है। इस वजह से इन्हें दोबारा फिर से ठीक होने में साल भर तक का समय लग जाता है या कुछ महिलाओं में यह उससे भी ज्यादा समय ले लेता है।
जो महिलाएं 35 साल की उम्र से ज्यादा होने पर शिशु प्रसव करती हैं या जो महिलाएं अत्यधिक मोटापे का शिकार हों उनमें यह समस्या ज्यादा देखी गई है। शिशु के जन्म के बाद कुछ महिलाओं में यह मानसिक तनाव की वजह से भी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिशु के जन्म के दौरान अत्यधिक पीड़ा सहन करते समय माता अत्यधिक मानसिक तनाव की स्थिति से गुजरती है।
इस समस्या से बचने के लिए कुछ लोग इस बात की राय देते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी के बजाय सी सेक्शन डिलीवरी करवा लिया जाए। लेकिन डॉक्टर और विशेषज्ञों की राय इससे भिन्न है।
उनके अनुसार सी सेक्शन के जरिए शिशु को जन्म देने के बाद भी बार बार यूरिन पास होने की समस्या की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा विश्व स्तरीय शोध में यह बात सामने आई है कि शिशु के जन्म के 20 सालों के बाद सभी महिलाओं में थोड़ी बहुत यह समस्या देखने को मिलती है - अब चाहे महिला ने शिशु का जन्म सी सेक्शन के जरिए किया हो या नॉर्मल डिलीवरी की पद्धति से बच्चे को जन्म दिया हो।
डॉक्टरों के अनुसार दैनिक जीवन में कुछ बदलाव करके इस समस्या पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है। हम आपको नीचे कुछ बातें बता रहे हैं जिन पर अगर आप ध्यान दें तो इस समस्या पर नियंत्रण पा सकती हैं।