Category: बच्चों की परवरिश
By: Vandana Srivastava | ☺2 min read
सामाजिक उत्थान के लिए नैतिकता की बुनियाद अत्यंत आवश्यक हैं। वैश्वीकरण से दुनिया करीब तो आ गई, बस अपनो से फासला बढ़ता गया। युवा पीढ़ी पर देश टिका हैं समय आ गया है की युवा पीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों को समझे और संस्कृति व परंपराओं की श्रेष्ठता का वर्णन कर लोगोँ में उत्साह ओर आशा का संचार करें और भारत का नाम गौरव करें।
विश्वगुरु भारत अपनी सभ्यता , संस्कृति और अपनी नैतिकता के कारण अपना एक महत्पूर्ण स्थान रखता हैं। परन्तु यह प्रश्न उठता हैं कि हमारी युवा पीढ़ी क्यों अपने नैतिक मूल्यों को खोती जा रही हैं? कहीं इसके पीछे हम माँ-बाप तो नहीं।
पिछले 50 सालों में समाज में अनेक प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। यह सच हैं कि परिवर्तन जीवन का नियम हैं परन्तु यह जरुरी तो नहीं कि मानसिक विचारों के परिवर्तन के साथ हम नैतिक मूल्यों को भुला दें। आज के समाज में नैतिकता का पतन हो रहा हैं। पुराने समाज में लोगों कि सोच स्वतंत्र थी वे नैतिकता को जानते तथा मानते थे। आधुनिक काल का मनुष्य कहने को तो स्वतंत्र हैं परन्तु उसकी सोच पर पूरी तरह विदेशी संस्कृति का राज हैं।आज नैतिकता का स्वर इतना गिर गया हैं कि कौवे हंस की कैरियर रिपोर्ट लिख रहे हैं।
मानव जीवन की अधिकतर समस्याओं का कारण मनुष्य का भ्रष्ट आचरण ही हैं , इसका कारण हैं नैतिक मूल्यों का धुंधलापन। स्वार्थसिद्धि के लिए लोग मानवता को भूल रहे हैं।
'नैतिकता' शब्द की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हैं। यह तो मानव मस्तिष्क की उपज हैं जो की प्रत्येक व्यक्ति विशेष के लिए भिन्न होती हैं। किसी के लिए अनुशासित जीवन नैतिकता हैं तो किसी के लिए लोगोँ का आदर करना नैतिकता हैं किन्तु हम नीति से युक्त व्यवहार को नैतिकता का नाम दें सकते हैं।
हमारे समाज में इतने गुरु हैं ,सभी धर्म और अध्यात्म की बात करते हैं , इसके बावजूद भी वर्तमान परिवेश में इतनी अराजकता , अशांति और अनीति फैली हुई हैं। मानव का धर्म से विमुख हो जाना भी अनैतिकता का एक कारण हैं। धर्म को जानने के बाद ही मानवीय गुण प्रकट होते हैं।
युवा पीढ़ी पर देश टिका हैं , जब वही युवा पीढ़ी देश को बरबाद करने लगेगी तो निश्चित हैं की देश अनैतिकता का रोग भोगेगा। आज समस्या यह हैं कि एकल परिवार हो रहे हैं , हर माँ - बाप की कोशिश रहती हैं की वह दादा - दादी से दूर रहे। आज महापुरषों की कहानियों से बच्चे दूर हैं। बल साहित्य की जगह कम्प्यूटर और टेलीविज़न ने लिए हैं।
'पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण' भी घटती हुई नैतिकता के लिए जिम्मेदार हैं। आधुनिक होने का मतलब बेशर्मी नहीं बल्कि पुरानी कुप्रथाओ को त्यागना हैं। नैतिकता और स्त्री एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। स्त्रियों का यह दायित्व बनता हैं कि नैतिक भूल्यों कि स्थापना में वे पुरजोर कोशिश करें और नैतिकता कि ओर उन्मुख हों।
नैतिक गुणों का जीवन रूप किसी समाज और राष्ट्र का विद्यार्थी ही होता हैं। इस प्रकार के गुणों की पात्रता जितनी विद्यार्थी में होती हैं उतना ओर किसी में नहीं। सब पूज्यों के प्रति शिष्टओर उदार सद्वृत्तियों को धारण करने में ही नैतिकता का जन्म होता हैं। अतएव सामाजिक उत्थान के लिए नैतिकता की बुनियाद अत्यंत आवश्यक हैं। क्योकिं वैश्वीकरण से दुनिया करीब तो आ गई .बस अपनो से फासला बढ़ता गया।
आज हम अपनी वर्तमान पीढ़ी से यही कह सकते हैं कि हम सब संगठित हो कर अपने समाज - संस्कृति व परंपराओं की श्रेष्ठता का वर्णन कर लोगोँ में उत्साह ओर आशा का संचार करें।
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