Category: बच्चों का पोषण
By: Salan Khalkho | ☺3 min read
UHT Milk एक विशेष प्रकार का दूध है जिसमें किसी प्रकार के जीवाणु या विषाणु नहीं पाए जाते हैं - इसी वजह से इन्हें इस्तेमाल करने से पहले उबालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दूध में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले दूध के सभी पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। यानी कि UHT Milk दूध पीने से आपको उतना ही फायदा प्राप्त होता है जितना कि गाय के ताजे दूध को पीने से। यह दूध जिस डब्बे में पैक करके आता है - आप इसे सीधा उस डब्बे से ही पी सकते हैं।

UHT Milk विज्ञान के बड़े अविष्कारों में से एक है। दूध को सुरक्षित करने की ऐसी पद्धति है जिसमें गाय के ताजे दूध को बहुत ही कम समय में बहुत ही ऊंचे तापमान तक गर्म किया जाता है और फिर तुरंत ही इसे ठंडा कर दिया जाता है। UHT दूध बच्चों के लिए फायेदेमंद है।
इससे दूध में मौजूद जितनी भी जीवाणु और विषाणु होते हैं वह पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। अगर इन्हें किसी भी प्रकार से प्रकृति के संपर्क में लाया जाए तो इनमें जीवाणु और विषाणु नहीं आ सकेंगे और यह दूध लंबे समय तक खराब नहीं होगा।
क्योंकि UHT Milk को उच्च तापमान पर बहुत ही थोड़े समय के लिए गर्म किया जाता है, इसमें मौजूद पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं और यह शरीर को पोषण से संबंधित वो सारे फायदे पहुंचाते हैं जो आपको गाय की ताजा दूध को पीने से मिलता है।
विश्व में हुए एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार UHT Milk साधारण दूध से ज्यादा सुरक्षित होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सर्वेक्षण के अनुसार यह पाया गया कि लोग गाय के दूध को इस्तेमाल करने के दौरान कई बार गर्म करते हैं।
जितनी बार गाय के दूध को उबाला जाता है, उतनी बार उसमें मौजूद कुछ पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। शोध विशेषज्ञों के अनुसार दूध को दो से 3 बार से ज्यादा नहीं उबालना चाहिए। साथ ही इसे कभी भी 3 मिनट से ज्यादा नहीं उबालना चाहिए - नहीं तो दूध में मौजूद पोषक तत्व तेजी से घटने लगते हैं।
UHT Milk एक विशिष्ट पद्धति से तैयार दूध होता है जिससे कि इसके अंदर के पोषक तत्व घटते नहीं है लेकिन इसमें मौजूद सारे जीवाणु और विषाणु जरूर नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए इस दूध को आप बिना गर्म किए हैं पी सकते हैं और कुछ दिनों तक इसे खोलने के बाद अपने फ्रीज में सुरक्षित भी रख सकते हैं।
दूध से संबंधित हुए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि लोग अधिकांश मामलों में दूध को 5 मिनिट तक उबालते हैं जो कि दूध में मौजूद पोषक तत्व को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। लोगों को सही तरीके से दूध को उबालने का तरीका नहीं पता है।
लोग यह भी नहीं जानते हैं कि अगर दूध को ज्यादा देर तक उबाला गया तो उसे उसके अंदर मौजूद पोषक तत्व नष्ट भी हो सकते हैं। आपने गाय के दूध को उबाला है इसका मतलब यह नहीं है कि आपको इसे दोबारा उबालने की आवश्यकता नहीं है।
गाय के दूध को हर बार इस्तेमाल करने से पहले उबालने की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि उबालते वक्त भले ही दूध में मौजूद सभी जीवाणु और विषाणु नष्ट हो जाए, लेकिन साधारण तापमान पर आने पर फिर से इन में बहुत तेजी से जीवाणु और विषाणु पनपने लगते हैं और अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं। कुछ ही घंटों में इनकी संख्या कितनी पड़ जाती है कि यह आप को बीमार कर सकते हैं।
साधारण दूध को उबालने की प्रक्रिया में दूध में मौजूद सभी जीवाणु और विषाणु पूरी तरह नष्ट नहीं होते हैं। 5 मिनट तक या 10 मिनट तक उबलने पर भी पूरी तरह नष्ट नहीं होते हैं। लेकिन इनकी संख्या इतनी घट जाती है कि यह आपको बीमार नहीं कर सकते हैं।
परंतु थोड़ी देर अगर इन्हें कमरे की साधारण तापमान पर छोड़ दिया जाए तो फिर से बचे हुए जीवाणु और विषाणु तेजी से अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और कुछ ही घंटों में इनकी संख्या कितनी बढ़ जाती है यह आपको आराम से बीमार कर सकते हैं।
साधारणतया 70 – 75 °C तापमान पर उबलने लगता है। लेकिन ultra-high temperature (“UHT”) milk प्रक्रिया में दूध को एक विशेष तकनीकी के द्वारा बहुत ही कम समय में 150 °C तापमान तक गर्म कर दिया जाता है।
इसे इस तापमान पर मात्र 2 सेकेंड के लिए रखा जाता है - और फिर तेजी से इस के तापमान को बहुत ज्यादा घटा दिया जाता है। यह दूध बाहरी वातावरण के संपर्क में आए बिना सीधा डब्बों मैं पैक कर दिया जाता है जिससे इस में बाहर से किसी प्रकार के जीवाणु या विषाणु के घुसने की संभावना पूरी तरह खत्म हो जाती है।
दूध को इस तरह से सुरक्षित करने की प्रक्रिया पर हुए शोध में यह पाया गया है कि दूध में मौजूद पोषक तत्वों में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आता है और यह पोषण के मामले में उतना ही फायदेमंद होता है जितना कि गाय का ताजा दूध।
UHT Milk दूध को एक विशेष प्रकार के डब्बे में रखा जाता है जिसे Tetra Pack कहते हैं। एक बार इस डब्बे को खोलने के बाद आपको दूध को जब तक समाप्त ना हो जाए फ्रिज में ही सुरक्षित रखना चाहिए। लेकिन जब तक आपने डब्बे को खोले नहीं है, आप इस कमरे के साधारण तापमान में रख सकते हैं।
Important Note: यहाँ दी गयी जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है । यहाँ सभी सामग्री केवल पाठकों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दी गई है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि यहाँ दिए गए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। आपका चिकित्सक आपकी सेहत के बारे में बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्प नहीं है। अगर यहाँ दिए गए किसी उपाय के इस्तेमाल से आपको कोई स्वास्थ्य हानि या किसी भी प्रकार का नुकसान होता है तो kidhealthcenter.com की कोई भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है।
प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर (बीपी) ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए आप नमक का कम से कम सेवन करें। इसके साथ आप लैटरल पोजीशन (lateral position) मैं आराम करने की कोशिश करें। नियमित रूप से अपना ब्लड प्रेशर (बीपी) चेक करवाते रहें और ब्लड प्रेशर (बीपी) से संबंधित सभी दवाइयां ( बिना भूले) सही समय पर ले।
गर्मियों में बच्चों के लिए कपड़े खरीदते वक्त रखें इन बातों का विशेष ध्यान। बच्चों का शरीर बड़ों (व्यस्क) की तरह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होता है। यही वजह है कि बच्चों को ठंड के मौसम में ज्यादा ठंड और गर्मियों के मौसम में ज्यादा गर्म लगता है। इसीलिए गर्मियों के मौसम में आपको बच्चों के कपड़ों से संबंधित बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।
शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु के नौ महीने पुरे होने पे केवल दो ही टीके लगाने की आवश्यकता है - खसरे का टीका और पोलियो का टिका। हर साल भारत में 27 लाख बच्चे खसरे के संक्रमण के शिकार होते है। भारत में शिशु मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण खसरा है।
Indian baby sleep chart से इस बात का पता लगाया जा सकता है की भारतीय बच्चे को कितना सोने की आवश्यकता है।। बच्चों का sleeping pattern, बहुत ही अलग होता है बड़ों के sleeping pattern की तुलना मैं। सोते समय नींद की एक अवस्था होती है जिसे rapid-eye-movement (REM) sleep कहा जाता है। यह अवस्था बच्चे के शारीरिक और दिमागी विकास के लहजे से बहुत महत्वपूर्ण है।
अगर जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 kg से कम वजन का होता है तो इसका मतलब शिशु कमजोर है और उसे देखभाल की आवश्यकता है। जानिए की नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के लिए आप को क्या क्या करना पड़ेगा।
बच्चों के पेट में कीड़े होना बहुत ही आम बात है। अगर आप के बच्चे के पेट में कीड़े हैं तो परेशान या घबराने की कोई बात नहीं। बहुत से तरीके हैं जिनकी मदद से बच्चों के पेट के कीड़ों को ख़तम (getting rid of worms) किया जा सकता है।
बच्चे को छूने और उसे निहारने से उसके दिमाग के विकास को गति मिलती है। आप पाएंगे की आप का बच्चा प्रतिक्रिया करता है जिसे Babinski reflex कहते हैं। नवजात बच्चे के विकास में रंगों का महत्व, बच्चे से बातें करना उसे छाती से लगाना (cuddle) से बच्चे के brain development मैं सहायता मिलती है।
रागी को Nachni और finger millet भी कहा जाता है। इसमें पोषक तत्वों का भंडार है। कैल्शियम, पोटैशियम और आयरन तो इसमें प्रचुर मात्रा में होता है। रागी का खिचड़ी - शिशु आहार - बेबी फ़ूड baby food बनाने की विधि
दस साल के बच्चे के आहार सरणी मैं वो सभी आहार सम्मिलित किया जा सकते हैं जिन्हे आप घर पर सभी के लिए बनती हैं। लेकिन उन आहारों में बहुत ज्यादा नमक, मिर्चा और चीनी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। आप जायके के लिए हलके मसलों का इस्तेमाल कर सकती हैं जैसे की धनिया पाउडर।
9 महीने के बच्चों की आहार सारणी (9 month Indian baby food chart) - 9 महीने के अधिकतर बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं की वो पिसे हुए आहार (puree) को बंद कर mashed (मसला हुआ) आहार ग्रहण कर सके। नौ माह का बच्चा आसानी से कई प्रकार के आहार आराम से ग्रहण कर सकता है। इसके साथ ही अब वो दिन में तीन आहार ग्रहण करने लायक भी हो गया है। संतुलित आहार चार्ट
सूजी का हलवा protein का अच्छा स्रोत है और यह बच्चों की immune system को सुदृण करने में योगदान देता है। बनाने में यह बेहद आसान और पोषण (nutrition) के मामले में इसका कोई बराबरी नहीं।
बच्चों में आहार शुरू करने की सबसे उपयुक्त उम्र होती है जब बच्चा 6 month का होता है। इस उम्र में बच्चे को दूध के साथ साथ पौष्टिक आहार की भी आवश्यकता पड़ती है। लेकिन पहली बार बच्चों के ठोस आहार शुरू करते वक्त (weaning) यह दुविधा होती है की क्या खिलाएं और क्या नहीं। इसीलिए पढ़िए baby food chart for 6 month baby.
अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|
बच्चों को बुद्धिमान बनाने के लिए जरुरी है की उनके साथ खूब इंटरेक्शन (बातें करें, कहानियां सुनाये) किया जाये और ऐसे खेलों को खेला जाएँ जो उनके बुद्धि का विकास करे। साथ ही यह भी जरुरी है की बच्चों पर्याप्त मात्रा में सोएं ताकि उनके मस्तिष्क को पूरा आराम मिल सके। इस लेख में आप पढेंगी हर उस पहलु के बारे में जो शिशु के दिमागी विकास के लिए बहुत जरुरी है।
टाइफाइड वैक्सीन का वैक्सीन आप के शिशु को टाइफाइड के बीमारी से बचता है। टाइफाइड का वैक्सीन मुख्यता दो तरह से उपलबध है। पहला है Ty21a - यह लाइव वैक्सीन जिसे मुख के रस्ते दिया जाता है। दूसरा है Vi capsular polysaccharide vaccine - इसे इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है। टाइफाइड वैक्सीन का वैक्सीन पहले दो सालों में 30 से 70 प्रतिशत तक कारगर है।
लाल रक्त पुरे शरीर में ऑक्सीजन पहुचाने में मदद करता है। लाल रक्त कोशिकायों के हीमोग्लोबिन में आयरन होता है। हीमोग्लोबिन ही पुरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचता है। बिना पर्याप्त आयरन के आपके शरीर में लाल रक्त की कमी हो जाएगी। बहुत से ऐसे भोजन हैं जिससे आयरन के कमी को पूरा किया जा सकता है।
सबसे ज्यादा बच्चे गर्मियों के मौसम में बीमार पड़ते हैं और जल्दी ठीक भी नहीं होते| गर्मी लगने से जहां एक और कमजोरी बढ़ जाती है वहीं दूसरी और बीमार होने का खतरा भी उतना ही अधिक बढ़ जाता है। बच्चों को हम खेलने से तो नहीं रोक सकते हैं पर हम कुछ सावधानियां अपनाकर उनको गर्मी से होने वाली बीमारियों से जरूर बचा सकते हैं |
दूध से होने वाली एलर्जी को ग्लाक्टोसेमिया या अतिदुग्धशर्करा कहा जाता है। कभी-कभी आप का बच्चा उस दूध में मौजूद लैक्टोज़ शुगर को पचा नहीं पाता है और लैक्टोज़ इंटॉलेन्स का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से उसे उलटी , दस्त व गैस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बच्चों में दूध में मौजूद दूध से एलर्जी होती है जिसे हम और आप पहचान नहीं पाते हैं और त्वचा में इसके रिएक्शन होने लगता है।
जानिये स्किन रैशेस से छुटकारे के घरेलू उपाय। बच्चों में स्किन रैश शीतपित्त आम तौर पर पाचन तंत्र की गड़बड़ी और खून में गर्मी बढ़ जाने के कारण होता है। तेल, मिर्च, बाजार में बिकने वाले फ़ास्ट फ़ूड, व चाइनीज़ खाना खाने से बच्चों में इस रोग के होने का खतरा रहता है। वातावरण में उपस्थित कई तरह के एलर्जी कारक भी इसके कारण होते हैं