Category: स्वस्थ शरीर
By: Vandana Srivastava | ☺8 min read
बुखार होना शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना है। बुखार अपने आप मे कोई बीमारी नहीं है लेकिन एक अंतर्निहित बीमारी का एक लक्षण हो सकता है। यह एक संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ रही है।

आपका का बच्चा अचानक खेलता - खेलता सुस्त हो जाता है और उसका शरीर गरम हो जाता है, इसका मतलब है कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
एक माँ होना के नाते आपकी ज़िम्मेदारी होती है कि आप बच्चे के प्रति जागरूक हों और उसके इस अवस्था का कारण ढूढ़े और उसका समाधान करें।
लगभग सभी बच्चों ने एक बार या कभी और बुखार का अनुभव किया है। बुखार होना शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना है।
बुखार अपने आप मे कोई बीमारी नहीं है लेकिन एक अंतर्निहित बीमारी का एक लक्षण हो सकता है। यह एक संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ रही है।
बुखार किसी बीमारी का प्राथमिक संकेत है लेकिन हमेशा बुखार का अर्थ किसी बड़ी बीमारी से नही होता। बच्चों में ज्यादातर बुखार वायरल इन्फेक्शन के कारण ही होता है।
कुछ परिस्थितियों में दंतुरण भी इसका कारण हो सकता है क्योकि इससे शरीर का तापमान बढ़ता है।
जब आप अपने शरीर के तापमान को बढ़ा हुआ पाते हो तो आपके लिए यह चिंता का विषय हो सकता है।
ऐसी परिस्थितियों में आप दुविधा में पड़ सकते हो, ऐसे समय में आपको अपने डॉक्टर की सलाहपर औषधियाँ लेने की जरुरत है।

जैसे ही आपको शिशु के शरीर में बुखार की अनुभूति होती है वैसे ही सबसे पहले आपको नरम कपडे को पानी में भिगोकर ठंड़ी पट्टी शिशु के सिर पर रखनी चाहिए। पट्टी पूरी तरह से सुख जाये तब समझ जाये की पट्टी ने बुखार सोख लिया है और इससे शरीर का तापमान भी कम होता है।
आप नरम कपडे या स्पंज का उपयोग कर शिशु के कुछ भाग जैसे बगल, पैर और हाथो को भी पोछ सकते हो। इससे आपके शरीर का तापमान भी कम होगा।
नोट – इस प्रक्रिया को करते समय एकदम ठन्डे या आइस वॉटर का उपयोग बिल्कुल ना करे। इससे शरीर के अंदर का तापमान बढ़ सकता है।
गुनगुने पानी से स्नान करने से शिशु को स्वस्थ लगेगा और इससे शरीर का तापमान भी नियंत्रित रहेगा। ऐसा करने से आपका शिशु अच्छी तरह से सो पायेगा। बुखार से जल्दी निजात पाने के लिए यह जरुरी है।
नोट – ऐसा करते समय कभी भी ज्यादा गरम या ठन्डे पानी का उपयोग ना करे, इससे आपके शरीर के अंदर का तापमान बढ़ सकता है।
जब किसी बीमार शिशु के देखभाल की बात की जाये तो यह जरुरी है की शिशु को रूम तापमान में रखकर उनकी आँखे बंद रखी जाये। और ध्यान रहे की रूम का तापमान ना कम हो ना ज्यादा। अपने शिशु के रूम तापमान को 70 से 74 डिग्री (21.1 से 23.3०C) तक रखना बेहतर होगा।

बहोत से माता पिता नवजात शिशुओ में बुखार के समय उन्हें कई सारे कपड़ो से ढँकना या उनपर बहोत से ब्लैंकेट डालना पसंद करते है। ऐसा करने से शिशु के शरीर का तापमान कम होने की बजाये बढ़ने लगता है।
यदि शिशु कपड़ो या ब्लैंकेट में लपेटा जाए तो उनका तापमान ज्यादा बढ़ने लगता है। ठंडी हवा के दौरान हलके गर्म कपडे शिशुओ को पहनाने से उनके शरीर का तापमान संतुलित रहता है।
अपने नवजात शिशुओ को हल्के और मुलायम कपडे ही पहनाये। और यदि आपका शिशु सो रहा हो तो आप जरुरत पड़ने पर हल्का ब्लैंकेट भी डाल सकते हो।
अपने शिशुओ के शरीर को आरामदायक कमरे में ही रखे, जहाँ का तापमान न कम हो ना ज्यादा।
अपने नवजात शिशु के पैरो के निचले भाग को गर्म तेल की सहायता से रगड़े। इससे शिशु को सिर्फ आरामदायक ही महसूस नहीं होगा बल्कि इससे आपका शिशु शांत भी रहेगा और शिशु को अच्छी नींद भी आएगी जो बुखार के समय में उसके जल्दी ठीक होने के लिए बहुत जरुरी है।
1 साल के कम की उम्र के शिशुओ के लिए तुलसी लाभदायक साबित हो सकती है। इससे शरीर का तापमान भी कम होता है। यह नेचुरल एंटीबायोटिक और इम्यून बूस्टर का काम करती है।
आप अपने बच्चे के शरीर का तापमान हर 4 - घंटे मे ले सकते है अगर आप सुनिश्चित करना चाहते है कि उसे बुखार है या नहीं।
मलाशय और ओज़ीलरी तरीको के लिए डिजिटल थर्मामीटर का उपयोग करें।
जब आपके बच्चे को बुखार हो तो वह सुस्त रहेगा और शायद उसे नींद भी आये। उसे घर पर पर्याप्त आराम करने दे। प्रीस्कूल के प्लेग्रुप से बच्चे को दूर रखें। बुखार पेट के पाचक गतिविधि को धीमा कर देता है। पचाने में मुश्किल भोजन से बचने की कोशिश करे। जब तक बच्चा मना नहीं करता है सामान्य आहार की मात्रा को कम करने के लिए कोई कारण नहीं है।
बुखार, दस्त, उल्टी या सर्दी-जुकाम के दौरान बच्चे में पानी की कमी हो जाती है। अगर आप अभी भी शिशु को स्तनपान कराती हैं, तो उसे अपनी मर्जी के अनुसार स्तनपान करने दें। आप क्लिनिक या अस्पताल से ओआरएस (ओरल रीहाइड्रेशन साल्ट्स) का घोल भी ला सकती हैं। यह आपके बच्चे को वे सभी पोषक तत्व प्रदान करेगा, जो उसने संक्रमण के दौरान खोए हैं। अगर, आपका शिशु केवल स्तनपान ही करता है, तो भी आप उसे ओआरएस का घोल दे सकती हैं।
डर, क्रोध, शरारत या यौन शोषण इसका कारण हो सकते हैं। रात में सोते समय अगर आप का बच्चा अपने दांतों को पिसता है तो इसका मतलब है की वह कोई बुरा सपना देख रहा है। बच्चों पे हुए शोध में यह पता चला है की जो बच्चे तनाव की स्थिति से गुजर रहे होते हैं (उदहारण के लिए उन्हें स्कूल या घर पे डांट पड़ रही हो या ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जो उन्हें पसंद नहीं है) तो रात में सोते वक्त उनमें दांत पिसने की सम्भावना ज्यादा रहती है। यहाँ बताई गयी बैटन का ख्याल रख आप अपने बच्चे की इस समस्या का सफल इलाज कर सकती हैं।
जी हाँ! अंगूठा चूसने से बच्चों के दांत ख़राब हो जाते हैं और नया निकलने वाला स्थयी दांत भी ख़राब निकलता है। मगर थोड़ी सावधानी और थोड़ी सूझ-बूझ के साथ आप अपने बच्चे की अंगूठा चूसने की आदत को ख़त्म कर सकती हैं। इस लेख में जानिए की अंगूठा चूसने के आप के बच्चों की दातों पे क्या-क्या बुरा प्रभाव पडेग और आप अपने बच्चे के दांत चूसने की आदत को किस तरह से समाप्त कर सकती हैं। अंगूठा चूसने की आदत छुड़ाने के बताये गए सभी तरीके आसन और घरेलु तरीके हैं।
बच्चो में दांत सम्बंधी समस्या को लेकर अधिकांश माँ बाप परेशान रहते हैं। थोड़ी से सावधानी बारात कर आप अपने बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत को घर पे ही ठीक कर सकती हैं। चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए दांतों का बहुत ही महत्व होता है। इसीलिए अगर बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो माँ बाप का परेशान होना स्वाभाविक है। बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत उनके चेहरे की खूबसूरती को ख़राब कर सकते हैं। इस लेख में हम आप को बताएँगे कुछ तरीके जिन्हें अगर आप करें तो आप के बच्चों के दांत नहीं आयेंगे टेढ़े-मेढ़े। इस लेख में हम आप को बताएँगे Safe Teething Remedies For Babies In Hindi.
केवल बड़े ही नहीं वरन बच्चों को भी बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के शिकार हो सकते हैं। इस मानसिक अवस्था का जितनी देरी इस इलाज होगा, शिशु को उतना ज्यादा मानसिक रूप से नुक्सान पहुंचेगा। शिशु के प्रारंभिक जीवन काल में उचित इलाज के दुवारा उसे बहुत हद तक पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए जरुरी है की समय रहते शिशु में बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के लक्षणों की पहचान की जा सके।
शिशु के जन्म के पश्चात मां को अपनी खान पान (Diet Chart) का बहुत ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय पौष्टिक आहार मां की सेहत तथा बच्चे के स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी है। अगर आपके शिशु का जन्म सी सेक्शन के द्वारा हुआ है तब तो आपको अपनी सेहत का और भी ज्यादा ध्यान रखने की आवश्यकता। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद कौन सा भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार चार से छह महीने पे शिशु शिशु का वजन दुगना हो जाना चाहिए। 4 महीने में आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए ये 4 बातों पे निर्भर करता है। शिशु के ग्रोथ चार्ट (Growth charts) की सहायता से आप आसानी से जान सकती हैं की आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए।
शिशु की खांसी एक आम समस्या है। ठंडी और सर्दी के मौसम में हर शिशु कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता है। इसके लिए डोक्टर के पास जाने की अव्शाकता नहीं है। शिशु खांसी के लिए घर उपचार सबसे बेहतरीन है। इसका कोई side effects नहीं है और शिशु को खांसी, सर्दी और जुकाम से रहत भी मिल जाता है।
सांस के जरिये भाप अंदर लेने से शिशु की बंद नाक खुलने में मदद मिलती है। गर्मा-गर्म भाप सांस के जरिये अंदर लेने से शिशु की नाक में जमा बलगम ढीला हो जाता है। इससे बलगम (कफ - mucus) के दुवारा अवरुद्ध वायुमार्ग खुल जाता है और शिशु बिना किसी तकलीफ के साँस ले पाता है।
D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine in Hindi) - हिंदी, - diphtheria, pertussis (whooping cough), and tetanus का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।
Ambroxol Hydrochloride - सर्दी में शिशु को दिया जाने वाला एक आम दावा है। मगर इस दावा के कुछ घम्भीर (side effects) भी हैं। जानिए की कब Ambroxol Hydrochloride को देना हो सकता है खतरनाक।
अगर आप यह जानना चाहते हैं की आप के चहेते फ़िल्मी सितारों के बच्चे कौन से स्कूल में पढते हैं - तो चलिए हम आप को इसकी एक झलक दिखलाते हैं| हम आप को बताएँगे की शाह रुख खान और अक्षय कुमार से लेकर अजय देवगन तक के बच्चे कौन कौन से स्कूल से पढें|
हमें आपने बच्चों को मातृभूमि से प्रेम करने की शिक्षा देनी चाहिए तथा उनके अंदर ये भावना पैदा करनी चाहिए की वे अपने देश के प्रति समर्पित रहें और ये सोचे की हमने अपने देश के लिए क्या किया है। वे यह न सोचे की देश ने उनके लिए क्या किया है। Independence Day Celebrations India गणतंत्र दिवस भारत नरेन्द्र मोदी 15 August 2017
6 महीने की उम्र में आप का बच्चा तैयार हो जाता है ठोस आहार के लिए| ऐसे मैं आप को Indian baby food बनाने के लिए तथा बच्चे को ठोस आहार खिलाने के लिए सही वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी| जानिए आपको किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी अपने बच्चे को ठोस आहार खिलाने में|
हर बच्चे को कम से कम शुरू के 6 महीने तक माँ का दूध पिलाना चाहिए| इसके बाद अगर आप चाहें तो धीरे-धीरे कर के अपना दूध पिलाना बंद कर सकती हैं| एक बार जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसे ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए| जब आप ऐसा करते हैं तो धीरे धीरे कर अपना दूध पिलाना बंद करें।
अनुपयोगी वस्तुओं से हेण्डी क्राफ्ट बनाना एक रीसाइक्लिंग प्रोसेस है। जिसमें बच्चे अनुपयोगी वास्तु को एक नया रूप देना सीखते हैं और वायु प्रदुषण और जल प्रदुषण जैसे गंभीर समस्याओं से लड़ने के लिए सोच विकसित करते हैं।
कुछ बातों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चे के बुद्धिस्तर को बढ़ा सकते हैं और बच्चे में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं। जैसे ही उसके अंदर आत्मविश्वास आएगा उसकी खुद की पढ़ने की भावना बलवती होगी और आपका बच्चा पढ़ाई में मन लगाने लगेगा ,वह कमज़ोर से तेज़ दिमागवाला बन जाएगा। परीक्षा में अच्छे अंक लाएगा और एक साधारण विद्यार्थी से खास विद्यार्थी बन जाएगा।
बच्चों को बुद्धिमान बनाने के लिए जरुरी है की उनके साथ खूब इंटरेक्शन (बातें करें, कहानियां सुनाये) किया जाये और ऐसे खेलों को खेला जाएँ जो उनके बुद्धि का विकास करे। साथ ही यह भी जरुरी है की बच्चों पर्याप्त मात्रा में सोएं ताकि उनके मस्तिष्क को पूरा आराम मिल सके। इस लेख में आप पढेंगी हर उस पहलु के बारे में जो शिशु के दिमागी विकास के लिए बहुत जरुरी है।
सर्दी - जुकाम और खाँसी (cold cough and sore throat) को दूर करने के लिए कुछ आसान से घरेलू उपचार (home remedy) दिये जा रहे हैं, जिसकी सहायता से आपके बच्चे को सर्दियों में काफी आराम मिलेगा।
वायरल संक्रमण हर उम्र के लोगों में एक आम बात है। मगर बच्चों में यह जायद देखने को मिलता है। हालाँकि बच्चों में पाए जाने वाले अधिकतर संक्रामक बीमारियां चिंताजनक नहीं हैं मगर कुछ गंभीर संक्रामक बीमारियां भी हैं जो चिंता का विषय है।