Category: शिशु रोग
By: Vandana Srivastava | ☺5 min read
डेंगू महामारी एक ऐसी बीमारी है जो पहले तो सामान्य ज्वर की तरह ही लगता है अगर इसका इलाज सही तरह से नहीं किया गया तो इसका प्रभाव शरीर पर बहुत भयानक रूप से पड़ता है यहाँ तक की यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। डेंगू का विषाणु मादा टाइगर मच्छर के काटने से फैलता है। जहां अधिकांश मच्छर रात के समय सक्रिय होते हैं, वहीं डेंगू के मच्छर दिन के समय काटते हैं।

हर बदलते मौसम के साथ आपके बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी उतार- चढ़ाव होता रहता है, जिसके कारण बुखार तथा अन्य प्रकार के रोग बच्चे के शरीर को जकड़ने लगते हैं।
बदलते मौसम के साथ सबसे अधिक संभावना बुखार होने की होती है। डेंगू बुखार, भारत में मच्छरों की वजह से होने वाली सबसे आम बीमारी है।
डेंगू महामारी एक ऐसी बीमारी है जो पहले तो सामान्य ज्वर की तरह ही लगता है अगर इसका इलाज सही तरह से नहीं किया गया तो इसका प्रभाव शरीर पर बहुत भयानक रूप से पड़ता है यहाँ तक की यह रोग जानलेवा भी हो सकता है।

डेंगू मलेरिया की तरह मच्छर के काटने से होता है। डेंगू का वायरस एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। डेंगू का विषाणु मादा टाइगर मच्छर के काटने से फैलता है। जहां अधिकांश मच्छर रात के समय सक्रिय होते हैं, वहीं डेंगू के मच्छर दिन के समय काटते हैं। यह मच्छर ठंडे मौसम में रुके हुए पानी पर पनपते हैं। बरसात के मौसम में डेंगू मच्छर तराई इलाकों में ही होते हैं। इस रोग की शुरुआत गर्मियों में होती है। इसी वजह से बारिश के दिनों और मानसून में डेंगू के मामले ज्यादा होते हैं।
डेंगू का बुखार ज़्यादा से ज़्यादा दो हफ़्ते तक रहता है और मॉनसून के महीने में अपना चरम प्रकोप दिखाना शुरू करता है।
जो लोग शारीरिक रूप से कमज़ोर होते हैं या उनकी प्रतिरोधक क्षमता (immunity) कमजोर होती है, उनमें डेंगू रोग होने की संभावना ज़्यादा होती है। एडीज मच्छर के काटने से जो वायरस फैलता है वह शरीर को तभी प्रभावित करता है जब शरीर उससे लड़ने में असक्षम होता है। यह रोग बच्चों को अधिक अपनी चपेट में लेता है। विशेष कर बच्चे शारीरिक रूप से कमज़ोर होने के कारण इससे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। डेंगू के एडीज मच्छर दिन में काटते हैं, इसलिए दिन के समय भी मच्छर से खुद को बचाना ज़रूरी होता है।

डेंगू के ज्वर के लक्षण प्रथम चरण में सामान्य ज्वर के तरह ही लगते हैं। इसलिए पहले के चरण में इसका पता लगाना मुश्किल होता है।
उनकी त्वचा पर लाल और सफेद धब्बेदार चकत्ते भी हो सकते हैं। साथ में निम्नांकित असर हो सकते हैं
यह तो डेंगू के प्रथम अवस्था के लक्षण हैं जो साधारणतः रोगी के शरीर के अनुसार होता है। लेकिन जब डेंगू के रोग की स्थिति बहुत भयावह हो जाती है तब शरीर में कुछ और समस्याएं नजर आने लगती है,

अगर बुखार तीन-चार दिन से हो रहा है तो समझदारी इसी में है कि तुरन्त डॉक्टर के पास जायें और अपने बच्चे के खून की जाँच करवाए।इससे समय रहते ही आप अपने बच्चे को डेंगू के रोग के प्रकोप से बचा पायेंगे। डेंगू होने पर अधिकांश लोग काफी कमजोरी महसूस करते हैं। बीमारी के बाद भी थोड़े समय तक यह कमजोरी रह सकती है। डेंगू का कोई निश्चित इलाज नहीं है, मगर लक्षणों को कम करने के लिए उपचार किया जाता है। बच्चे को आईब्रूप्रोफेन या कोई प्रज्वलनरोधी (एंटी इनफ्लेमेटरी) दवाएं नहीं दें। इनसे बच्चे के खून में प्लेटलेट की संख्या घट सकती है।

आप निम्नांकित उपाय द्वारा डेंगू जैसे रोग से अपने बच्चे को बचा सकती हैं
डेंगू एक लाइलाज रोग है। अभी तक इसकी कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है सिर्फ शरीर की इम्युनिटी/ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना ही एक मात्र इलाज है।
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शिशु को 2 वर्ष की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मेनिंगोकोकल के खतरनाक बीमारी से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
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माँ बनना बहुत ही सौभाग्य की बात है। मगर माँ बनते ही सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती है की अपने नन्हे से शिशु की देख भाल की तरह की जाये ताकि बच्चा रहे स्वस्थ और उसका हो अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास।
कोलोस्ट्रम माँ का वह पहला दूध है जो रोगप्रतिकारकों से भरपूर है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है जो नवजात शिशु के मांसपेशियोँ को बनाने में मदद करती है और नवजात की रोग प्रतिरक्षण शक्ति विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Beta carotene भरपूर, शकरकंद शिशु की सेहत और अच्छी विकास के लिए बहुत अच्छा है| जानिए इस step-by-step instructions के जरिये की आप घर पे अपने शिशु के लिए कैसे शकरकंद की प्यूरी बना सकते हैं| शिशु आहार - baby food
रागी का हलुवा, 6 से 12 महीने के बच्चों के लिए बहुत ही पौष्टिक baby food है। 6 से 12 महीने के दौरान बच्चों मे बहुत तीव्र गति से हाड़ियाँ और मासपेशियां विकसित होती हैं और इसलिए शरीर को इस अवस्था मे calcium और protein की अवश्यकता पड़ती है। रागी मे कैल्शियम और प्रोटीन दोनों ही बहुत प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता है।
आठ महीने की उम्र तक कुछ बच्चे दिन में दो बार तो कुछ बच्चे दिन में तीन बार आहार ग्रहण करने लगते हैं। अगर आप का बच्चा दिन में तीन बार आहार ग्रहण नहीं करना चाहता तो जबरदस्ती ना करें। जब तक की बच्चा एक साल का नहीं हो जाता उसका मुख्या आहार माँ का दूध यानि स्तनपान ही होना चाहिए। संतुलित आहार चार्ट
माँ के दूध से मिलने वाले होर्मोनेस और एंटीबाडीज बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है| ये बच्चे के शरीर को viruses और bacteria से मुकाबला करने में सक्षम बनता है| स्तनपान वाले बच्चों में कान का infection, साँस की बीमारी और diarrhea कम होता है| उन बच्चों को डॉक्टर को भी कम दिखाना पड़ता है|
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मेनिंगोकोकल वैक्सीन (Meningococcal Vaccination in Hindi) - हिंदी, - मेनिंगोकोकल का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
6 माह से 1 साल तक के शिशु को आहार के रूप में दाल का पानी,चावल का पानी,चावल,सूजी के हलवा,चावल व मूंग की खिचड़ी,गूदेदार, पके फल, खीर, सेरलेक्स,पिसे हुए मेवे, उबले हुए चुकंदर,सप्ताह में 3 से 4 अच्छे से उबले हुए अंडे,हड्डीरहित मांस, भोजन के बाद एक-दो चम्मच पानी भी शिशु को पिलाएं।
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